शिक्षा व्यवस्था से जुड़ी गहराती चुनौतियों और निजी विद्यालयों के समक्ष उत्पन्न हो रही वित्तीय समस्याओं को लेकर प्राइवेट स्कूल्स एसोसिएशन ने आज अपने प्रधान कार्यालय में एक विस्तृत प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। इस अवसर पर प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया के दर्जनों पत्रकार उपस्थित रहे, जिन्होंने एसोसिएशन के पदाधिकारियों से सीधे संवाद किया।
कॉन्फ्रेंस की अध्यक्षता एसोसिएशन के अध्यक्ष मिथिलेश रंजन ने की, जबकि मंच पर मुख्य संरक्षक धर्मेंद्र उपाध्याय, उपाध्यक्ष अविनाश कुमार, सचिव सह प्रवक्ता मनोज कुमार, मुख्य सलाहकार शिला पाण्डेय, प्रबंधक शशिकला राय, कोषाध्यक्ष हेमंत कुमार यादव, महामंत्री नितीन दरबार, संयोजक सनोज कुमार, समन्वयक अनंत कुमार सिंह, एवं जिला कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. आदित्य तिवारी भी उपस्थित रहे।

प्रति पूर्ति भुगतान में देरी से स्कूलों पर वित्तीय संकट
प्रेस को संबोधित करते हुए सचिव सह प्रवक्ता मनोज कुमार ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि शिक्षा विभाग और जिला शिक्षा कार्यालय की लापरवाही के चलते निजी विद्यालयों को मिलने वाली प्रति पूर्ति की राशि (Reimbursement Fund) का भुगतान महीनों से लंबित पड़ा है। यह राशि सामाजिक न्याय और छात्र हित के नाम पर चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत गरीब छात्रों की पढ़ाई का आंशिक खर्च वहन करने के लिए दी जाती है।
उन्होंने कहा कि “जब सरकार छात्रों के नाम पर योजनाएं घोषित करती है, तो उसका लाभ निजी विद्यालयों को समय पर मिलना चाहिए ताकि वे छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में सक्षम रह सकें। किंतु स्थिति यह है कि इस राशि के अभाव में कई स्कूल शिक्षकों को वेतन तक नहीं दे पा रहे हैं।”
सरकार की नीति और ज़मीनी क्रियान्वयन में बड़ा अंतर
अध्यक्ष मिथिलेश रंजन ने कहा कि सरकार चाहे जितने भी घोषणाएं कर ले, लेकिन ज़मीनी स्तर पर स्कूल संचालकों को केवल कागज़ी प्रक्रिया और आश्वासनों के सहारे छोड़ दिया गया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कई स्कूलों ने प्रति पूर्ति के लिए जरूरी दस्तावेज़ समय पर जमा किए, कई स्तरों पर वेरिफिकेशन भी हो चुका है, फिर भी भुगतान लंबित है।
“हम सिर्फ़ सरकारी राशि की मांग नहीं कर रहे, हम छात्रों के अधिकारों की रक्षा की बात कर रहे हैं,” – उन्होंने जोर देकर कहा।
उपाध्यक्ष की चेतावनी: समाधान नहीं तो चरणबद्ध आंदोलन
उपाध्यक्ष अविनाश कुमार ने मीडिया को बताया कि अगर इस माह के अंत तक लंबित भुगतान नहीं किया गया, तो एसोसिएशन जिला और राज्य स्तर पर चरणबद्ध आंदोलन शुरू करने को विवश होगा। उन्होंने कहा, “हमारे पास स्कूल चलाने की प्रशासनिक, अकादमिक और आर्थिक जिम्मेदारियां होती हैं। जब सरकार अपने हिस्से का भुगतान नहीं करती, तो पूरा बोझ स्कूल संचालकों पर आ जाता है, जो असहनीय हो गया है।”
शिक्षा को आर्थिक संकट से मुक्त करने की मांग
मुख्य सलाहकार शिला पाण्डेय ने कहा कि यदि राज्य सरकार वास्तव में समावेशी शिक्षा चाहती है, तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि निजी स्कूलों को उनका बकाया समय पर मिले। उन्होंने कहा, “निजी स्कूल बिहार की शिक्षा प्रणाली की रीढ़ हैं, और उन्हें संकट में डालना पूरे भविष्य को संकट में डालने जैसा है।”
प्रेस से संवाद: पारदर्शिता, जवाबदेही और समर्थन की अपील
प्रबंधक शशिकला राय और समन्वयक अनंत कुमार सिंह ने यह स्पष्ट किया कि एसोसिएशन किसी प्रकार की टकराव की राजनीति में विश्वास नहीं करता, लेकिन सरकार की चुप्पी और उपेक्षा उन्हें आंदोलन की ओर धकेल रही है। उन्होंने मीडिया से अपील की कि वह इस मुद्दे को केवल स्कूल संचालकों की शिकायत नहीं, बल्कि एक सामाजिक और शैक्षिक संकट के रूप में देखे।
कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. आदित्य तिवारी की निष्पक्ष भूमिका पर जोर
जिला कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. आदित्य तिवारी की उपस्थिति इस संवाद को एक प्रशासनिक संतुलन देती रही। उन्होंने भी निजी रूप से एसोसिएशन की चिंताओं को गंभीर बताते हुए आश्वासन दिया कि वे सरकार तक इन समस्याओं को सही रूप में पहुंचाएंगे।
शिक्षा का निजी ढांचा भी ज़िम्मेदारी चाहता है
प्राइवेट स्कूल्स एसोसिएशन की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस ने एक बार फिर यह रेखांकित किया कि सरकार की नीतियां तब तक प्रभावी नहीं हो सकतीं, जब तक ज़मीनी क्रियान्वयन सुनिश्चित न किया जाए। यदि प्रति पूर्ति जैसे आवश्यक भुगतान समय पर नहीं होते, तो न केवल स्कूल प्रभावित होते हैं, बल्कि छात्र, शिक्षक और पूरा शिक्षा तंत्र अस्थिर हो जाता है।
अब यह देखना होगा कि शिक्षा विभाग इस चेतावनी को किस प्रकार लेता है — संवाद के अवसर के रूप में, या आंदोलन की दस्तक के रूप में।