राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) के प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) से आधिकारिक रूप से नाता तोड़ने की घोषणा कर दी है। उन्होंने यह बयान पटना के बापू सभागार में अंबेडकर जयंती के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दिया।
दलित विरोधी बताई सरकार
पारस ने इस मौके पर एनडीए सरकार को दलित विरोधी और भ्रष्टाचारी करार दिया। उन्होंने कहा:
“अब हम अपनी पार्टी और संगठन को मजबूत करने के लिए काम करेंगे। जहां हमें उचित सम्मान मिलेगा, हम वहीं जाएंगे।”
NDA से दूरी की पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो पशुपति पारस और एनडीए के रिश्तों में दरार कोई नया घटनाक्रम नहीं है। इसकी शुरुआत लोकसभा चुनाव 2024 से पहले ही हो चुकी थी। पारस तब तक गठबंधन में बने रहे, जब तक उन्हें उम्मीद थी कि एनडीए उन्हें कोई सम्मानजनक सीट देगी। लेकिन सीट शेयरिंग में उन्हें पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया।
एनडीए द्वारा एक भी सीट न दिए जाने से पशुपति पारस गंभीर रूप से आहत हुए। इसके बावजूद उन्होंने अंतिम समय तक एनडीए की तरफ आस लगाए रखी, लेकिन निराशा ही हाथ लगी।
चिराग पासवान की बढ़ती ताकत बनी कारण
2024 के लोकसभा चुनाव में उनके भतीजे चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) ने बिहार की 5 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी पर जीत हासिल की। इससे एनडीए में चिराग का कद और बढ़ गया। परिणामस्वरूप चिराग पासवान को केंद्र सरकार में मंत्री भी बना दिया गया – ठीक उसी मंत्रालय में, जहां उनके पिता स्व. रामविलास पासवान मंत्री रहे थे।
यह घटनाक्रम पशुपति पारस के लिए एक राजनीतिक झटका था। पार्टी में अलग-थलग पड़ने और एनडीए में अनदेखी के चलते उन्होंने विकल्पों की तलाश शुरू कर दी।
लालू यादव से बढ़ती नजदीकियां
सूत्रों के अनुसार, पिछले कुछ महीनों में पशुपति पारस की राजद प्रमुख लालू यादव से दही-चूड़ा भोज या इफ्तार जैसे सामाजिक आयोजनों के बहाने अनौपचारिक मुलाकातें हुईं। हालांकि, सार्वजनिक रूप से उन्होंने किसी राजनीतिक संवाद की बात स्वीकार नहीं की, लेकिन इन बैठकों ने राजनीतिक गलियारों में अटकलें तेज कर दी थीं।
आगामी बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एनडीए से अलग होने का फैसला पूर्व नियोजित था, जिसे अब बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को ध्यान में रखते हुए औपचारिक रूप दिया गया है। पारस की पार्टी अब राजद गठबंधन की ओर झुकाव दिखा रही है। सूत्र बताते हैं कि राजद से सकारात्मक संकेत मिलने के बाद ही पारस ने यह फैसला सार्वजनिक किया।
पशुपति पारस का एनडीए से नाता तोड़ना बिहार की राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत है। यह न केवल पार्टी के अस्तित्व की लड़ाई है, बल्कि दलित वोट बैंक को लेकर बनने वाली नई राजनीतिक धुरी की भी शुरुआत हो सकती है। अब देखने वाली बात यह होगी कि राजद गठबंधन उन्हें कितनी अहमियत देता है और उनका भविष्य राजनीतिक समीकरणों को कैसे प्रभावित करता है।