“कहा जाता है कि इतिहास अपने आप को दुहराता है… और लगता है कि भारत-पाकिस्तान के संबंधों में इतिहास फिर करवट लेने को है।” गुरुवार की रात उपमहाद्वीप के लिए असाधारण रूप से तनावपूर्ण रही। भारत के ऑपरेशन सिंदूर के जवाब में पाकिस्तान ने बुधवार को भारत के 15 शहरों पर मिसाइल और ड्रोन हमले करने की नाकाम कोशिश की। गुरुवार को भी पाकिस्तान की हताशा साफ नज़र आई—एक के बाद एक ड्रोन, और मिसाइल हमले, जो भारतीय सुरक्षा कवच के सामने निष्प्रभावी साबित हुए।
विश्लेषकों की नजर में यह परिदृश्य 1971 के उस युद्ध से पहले के हालात जैसा प्रतीत होता है, जब पूर्वी पाकिस्तान में बिगड़ते हालात और पाकिस्तानी नेतृत्व की जिद ने एक पूरे देश को टूटने के कगार पर पहुँचा दिया था।
सवाल उठता है—क्या पाकिस्तान एक बार फिर टूटने की दिशा में बढ़ रहा है? क्या भारत को एक और निर्णायक कार्यवाही की आवश्यकता है?
1971 में, पूर्वी पाकिस्तान में सेना का दमन, बंगाली जनता का आंदोलन, और भारत में आए करोड़ों शरणार्थियों ने युद्ध की नींव रखी थी। पाकिस्तान ने तब ऑपरेशन चंगेज़ ख़ान के तहत भारत के 11 एयरबेस पर अचानक हमला कर युद्ध की शुरुआत की थी।
अब गुरुवार को जो हुआ, वह क्या आधुनिक ‘चंगेज़ ख़ान’ था?
पाकिस्तान के चार फाइटर जेट और दर्जनों ड्रोन भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम—विशेषकर S-400—द्वारा मार गिराए गए। जान-माल का नुकसान नहीं हुआ, लेकिन भारत को निर्णायक कार्यवाही का स्पष्ट कारण ज़रूर मिल गया।
इतिहास गवाह है, जब-जब भारत को निर्णायक नेतृत्व मिला, तब-तब असंभव को संभव किया गया।
1971 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दृढ़ इच्छाशक्ति ने पाकिस्तान को विभाजित कर बांग्लादेश को जन्म दिया। आज, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुच्छेद 370 की समाप्ति, तीन तलाक़, वक्फ संशोधन अधिनियम, NRC और नोटबंदी जैसे कठिन निर्णयों से अपनी निर्णायक नेतृत्व क्षमता पहले ही सिद्ध कर दी है।
अब सवाल यह नहीं है कि पाकिस्तान बचेगा या टूटेगा—सवाल यह है कि यह कब और कितने टुकड़ों में होगा।
बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलन आज 1971 के मुक्ति संग्राम की प्रतिकृति बन चुका है। बलूच लिबरेशन आर्मी पाकिस्तान सेना को आए दिन चुनौती दे रही है। ग्वादर पोर्ट और प्राकृतिक संसाधनों की लूट ने जनता का सरकार पर विश्वास समाप्त कर दिया है। पाकिस्तानी सेना अब वहां नियंत्रण में नहीं, बल्कि रक्षात्मक मुद्रा में है।
इसी बीच भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करना भी पाकिस्तान में आंतरिक अस्थिरता को और बढ़ा सकता है।
सिंध और खैबर पख्तूनख्वा में भी अलगाववादी सुर तेज़ हो चुके हैं। 27 अप्रैल को बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया कि वर्ष 2025 के अंत तक पाकिस्तान चार टुकड़ों में बंट जाएगा। अभी ये बयान राजनीतिक कहे जा सकते हैं, लेकिन इतिहास बताता है—बदलाव अक्सर कल्पना से शुरू होता है।
और जब नेतृत्व के पास इच्छाशक्ति हो, तो कल्पना, रणनीति में बदल जाती है।
पाक अधिकृत कश्मीर यानी POK, भारत का अभिन्न हिस्सा है। संसद इसे 1994 में ही स्पष्ट कर चुकी है। अब वहां जनता बिजली, पानी और आधारभूत सुविधाओं के अभाव से त्रस्त है। हाल के प्रदर्शनों में पाकिस्तानी शासन के खिलाफ गुस्सा साफ दिखाई देता है। भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर POK में कार्रवाई का नैतिक और राजनीतिक आधार पहले से ही तैयार है।
और सबसे अहम बात—1971 में पूर्वी पाकिस्तान भारत से हजारों किलोमीटर दूर था। लेकिन POK और बलूचिस्तान अब भारत की सीमाओं से लगे हैं। लॉजिस्टिक और सामरिक दृष्टि से भारत के पास बढ़त है।
अंत में, यही कहा जा सकता है—पाकिस्तान ने फिर वही गलती दोहराई है। और भारत एक बार फिर इतिहास लिखने की स्थिति में खड़ा है। पर अब यह कहानी कितने अध्यायों में लिखी जाएगी, यह आने वाले कुछ हफ्तों में तय होगा।