बिहार से देश के अन्य हिस्सों में काम करने के लिए पलायन करने वाले मजदूरों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, राज्य से करीब 27.5 लाख प्रवासी मजदूरों का डेटा तैयार किया गया है। इसमें दरभंगा, नवादा, पूर्वी चंपारण, कटिहार, सारण और समस्तीपुर जैसे जिले सबसे आगे हैं।
अब बिहार सरकार इन प्रवासी मजदूरों के लिए एक डिजिटल ऐप लॉन्च करने की तैयारी में है, जिससे उनका पंजीकरण किया जाएगा और सामाजिक सुरक्षा तथा रोजगार योजनाओं का लाभ उन्हें सीधे मिल सकेगा।
उत्तर प्रदेश के बाद बिहार देश में दूसरे स्थान पर
देश में प्रवासी श्रमिकों के सबसे बड़े स्रोत के तौर पर उत्तर प्रदेश के बाद बिहार दूसरे स्थान पर है।
दरभंगा और नवादा जैसे जिलों से सबसे ज्यादा मजदूर दिल्ली, मुंबई, पंजाब और गुजरात में रोजी-रोटी के लिए पलायन करते हैं।
एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, बिहार के 50% से अधिक परिवार प्रवास से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित हैं, खासकर दरभंगा, कोसी, तिरहुत और पूर्णिया प्रमंडलों में। यहाँ मौसमी प्रवास, मुख्यतः बाढ़ और प्राकृतिक आपदाओं के कारण बड़े पैमाने पर होता है।
कोविड काल में प्रवासी मजदूरों की बड़ी वापसी
बिहार आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और अन्य स्रोतों से मिले आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 महामारी के दौरान लौटे प्रवासी मजदूरों में सबसे ज्यादा संख्या पूर्वी चंपारण, कटिहार और दरभंगा जिलों से थी।
इन जिलों में 60,000 से अधिक पंजीकृत मजदूर लौटे। पूरे बिहार में औसतन प्रति जिले 38,600 पंजीकृत और 64,600 अपेक्षित लौटे मजदूरों का अनुमान लगाया गया।
बिहार सरकार का नया डिजिटल प्रयास: मजदूर ऐप
बिहार सरकार अब प्रवासी मजदूरों के लिए एक नया ऐप लाने की योजना बना रही है, जो ई-श्रम पोर्टल की तर्ज पर काम करेगा।
इस ऐप के माध्यम से:
- मजदूरों का डिजिटल पंजीकरण किया जाएगा,
- उनकी स्किल मैपिंग होगी,
- और उन्हें आयुष्मान भारत, पीएम सुरक्षा बीमा योजना जैसी सरकारी योजनाओं से जोड़ा जाएगा।
उल्लेखनीय है कि देशभर में ई-श्रम पोर्टल पर 30.58 करोड़ मजदूरों का पंजीकरण हो चुका है, जिसमें बिहार का बड़ा योगदान रहा है।
जिलेवार स्थिति:
दरभंगा जिला:
- पारंपरिक रूप से प्रवासी मजदूरों का केंद्र।
- मजदूर मुख्यतः दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में जाते हैं।
- 80% प्रवासी भूमिहीन या एक एकड़ से कम जमीन के मालिक हैं।
- औसत प्रवासी मजदूर की आयु 32 वर्ष है।
नवादा जिला:
- खेतिहर मजदूरी और निर्माण कार्यों में बड़े पैमाने पर पलायन।
- कोविड के दौरान क्वारंटीन सेंटरों की कमी और अव्यवस्था से मजदूरों को भारी कठिनाइयाँ हुईं।
अन्य जिले:
- कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज सहित कोसी और तिरहुत प्रमंडलों के जिलों से भी भारी संख्या में मौसमी प्रवास होता है, विशेषकर बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान।
बिहार में कृषि संकट और प्रवास
बिहार की कृषि अर्थव्यवस्था की स्थिति चिंताजनक रही है।
- 2012-13 में कृषि विकास दर केवल 3.5% रही थी।
- रोजगार के सीमित अवसर और सामाजिक-आर्थिक दबाव मजदूरों को राज्य से बाहर पलायन के लिए मजबूर करते हैं।
- अधिकांश प्रवासी असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं और उनकी औसत वार्षिक प्रेषण राशि केवल 26,020 रुपये है।
राज्य में हर साल आने वाली भीषण बाढ़ और कमजोर आपदा प्रबंधन तंत्र मौसमी प्रवास को और अधिक बढ़ाता है।
क्या ऐप से सचमुच समाधान होगा?
हालांकि सरकार का ऐप एक सकारात्मक पहल है, लेकिन केवल आंकड़ों का संकलन ही पर्याप्त नहीं है। जब तक:
- स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन नहीं होगा,
- प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के ठोस उपाय नहीं किए जाएंगे,
- और उद्योग-निवेश बढ़ाकर नौकरियों का स्थानीय नेटवर्क नहीं तैयार किया जाएगा,
तब तक प्रवासी मजदूरों का बिहार से पलायन रुकना कठिन है।
सिर्फ डिजिटल आंकड़े इकट्ठा करने से नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर बदलाव लाकर ही इस गंभीर समस्या का स्थायी समाधान संभव है।