Friday, September 5, 2025
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सुनील की मौत, सिस्टम की खामोशी: क्या सिर्फ गरीब की जान इतनी सस्ती है? नगर निगम ने सोते मजदूर पर पलटा मलबा

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में नगर निगम की लापरवाही और कथित दबंगई की एक ऐसी शर्मनाक और क्रूर तस्वीर सामने आई है, जिसे सुनकर इंसानियत भी शर्मसार हो जाए। एक मेहनतकश दिहाड़ी मजदूर, जिसने दिनभर की थकान के बाद एक पेड़ की छांव में चंद मिनटों की नींद ली थी, वह नींद उसकी ज़िंदगी की आखिरी नींद बन गई। आरोप है कि नगर निगम के कर्मचारियों ने सिल्ट और मलबे से भरी ट्राली को उसी गरीब मजदूर के ऊपर पलट दिया, जिससे उसकी मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई।

घटना बरेली के थाना बारादरी क्षेत्र के सततीपुर इलाके की है, जहां 22 मई की शाम मजदूर सुनील अपने रोज़ की तरह मजदूरी कर थक हार कर एक पेड़ की छांव में सुस्ताने बैठा था। यह आम आदमी का वह आम पल था, जब उसने सिर्फ कुछ सांसें आराम की उम्मीद में ली थीं। लेकिन नगर निगम की सिस्टम रूपी ट्रैक्टर ने उसकी यह उम्मीद भी कुचल डाली — शाब्दिक और वास्तविक दोनों अर्थों में।

घटना की विभत्स तस्वीर: “देख रहे थे, लेकिन जानबूझकर कुचल दिया”

घटनास्थल पर मौजूद चश्मदीद, एक मासूम बच्चा—जो इलाके में ही खेल रहा था—ने निगमकर्मियों को बार-बार चेताया कि “भाई, यहां कोई सो रहा है।” लेकिन कथित रूप से दबंगई के नशे में चूर नगर निगम कर्मचारियों ने उसकी बात को अनसुना कर दिया और ट्राली को बिना देखे पलट दिया। ट्राली में गंदगी, कीचड़, नालों की सिल्ट और मलबा भरा था, और वह सीधे सुनील के ऊपर जा गिरा।

कुछ सेकंडों में सुनील की साँसें बंद हो चुकी थीं। उसके शरीर को जैसे मिट्टी में दफ्न कर दिया गया हो—लेकिन वह मिट्टी उसकी मेहनत की नहीं, सरकारी बेरुखी और अमानवीयता की थी।

अफसरशाही की शर्मनाक प्रतिक्रिया: उल्टा धमकाया!

जब सुनील के परिजन शिकायत लेकर नगर निगम दफ्तर पहुंचे तो उन्हें इंसाफ की जगह धमकियाँ मिलीं। आरोप है कि अधिकारियों ने कहा, “बहुत बोलोगे तो और मुकदमे झेलने पड़ेंगे।” इस हद तक अमानवीयता? क्या वाकई एक गरीब की जान इतनी सस्ती है कि उसके दर्द की भी बोली लगाई जा सकती है?

FIR दर्ज, लेकिन सवालों की फेहरिस्त लंबी है

पुलिस ने मृतक सुनील के पिता की शिकायत पर मामला दर्ज कर लिया है। IPC की गंभीर धाराओं में FIR तो लिख दी गई है, लेकिन सवाल यह है कि क्या कोई कार्रवाई होगी? क्या दोषी कर्मचारी निलंबित होंगे? या फिर सुनील की मौत सिर्फ एक और “अफसोसजनक हादसा” बनकर फाइलों में दफ्न हो जाएगी?

ये महज हादसा नहीं, एक प्रणालीगत हत्या है

यह घटना सिर्फ एक “Accident” नहीं है। यह उस व्यवस्था की निर्ममता का पर्दाफाश है, जहां गरीब की ज़िंदगी की कोई कीमत नहीं। यह एक प्रणालीगत हत्या है, जो बेरुखी, लापरवाही और सत्ता के दंभ से मिलकर हुई है।

इस दर्दनाक घटना के 24 घंटे बीतने को हैं, लेकिन अब तक कोई भी स्थानीय विधायक, सांसद या नगर निगम का आला अधिकारी पीड़ित परिवार से मिलने नहीं गया। वो नेता जो गली-मुहल्लों में झाड़ू चलाते हुए फोटो खिंचवाते हैं, वो इस मलबे के नीचे दबे इंसान की बात करने को क्यों तैयार नहीं?

22 वर्षीय सुनील एक साधारण मजदूर था, जो अपने बूढ़े पिता और बीमार माँ का इकलौता सहारा था। उसका कोई राजनीतिक कनेक्शन नहीं था, न ही कोई “पावरफुल रिश्तेदार।” वो सिर्फ रोज़ 400–500 रुपये कमा कर अपने परिवार का पेट पालता था। लेकिन उसी का जीवन एक सरकारी मलबे के नीचे दफ्न हो गया।

अब मुआवजे की नहीं, न्याय की जरूरत है

राज्य सरकार और प्रशासन को इस मुद्दे को “दुर्घटना” कहकर पल्ला नहीं झाड़ना चाहिए। जब तक दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती और सिस्टम में जवाबदेही तय नहीं की जाती, तब तक यह घटना हर गरीब मज़दूर के सिर पर मंडराता खतरा बनी रहेगी।

सुनील अब नहीं रहा — लेकिन सवाल अब भी ज़िंदा हैं।

Amlesh Kumar
Amlesh Kumar
अमलेश कुमार Nation भारतवर्ष में सम्पादक है और बीते ढाई दशक से प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिकता जगत की अनुभव के साथ पंजाब केशरी दिल्ली से शुरुवात करते हुए दिनमान पत्रिका ,बिहारी खबर, नवबिहार, प्रभात खबर के साथ साथ मौर्य टीवी, रफ्तार टीवी,कशिश न्यूज, News4Nation जैसे मीडिया हाउस में काम करते राजनीति, क्राइम, और खेल जैसे क्षेत्रों में बेबाक और बेदाग पत्रकारिता के लिए जाने जाते है।

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