बिहार में शराबबंदी है…लेकिन शराब है। और अगर आप सोचते हैं कि तस्कर केवल बोलेरो, बाइक या बैलगाड़ी का सहारा लेते हैं—तो आप पुरानी दुनिया में जी रहे हैं। अब शराब घोड़े की पीठ पर बिहार के खेत-खलिहानों में ‘दौड़’ रही है। और बिहार पुलिस इस दौड़ में अब घोड़ों को हिरासत में लेने लगी है—क्योंकि असली तस्कर, इंसान, हर बार ‘घोड़े बेचकर’ सो जाते हैं।
घोड़े की पीठ पर विदेशी शराब, दियारा बना तस्करी का हाइवे
पश्चिम चंपारण के नौतन थाना क्षेत्र के बैरा परसौनी गांव में सोमवार की रात पुलिस ने एक ऐसा ‘तस्कर’ पकड़ा जिसे न पहचान पत्र चाहिए, न मोबाइल, और न ही झूठ बोलने की ज़रूरत। वो चुपचाप 50 लीटर अंग्रेजी शराब ढो रहा था—और उसका नाम था: “राजकुमार”… एक घोड़ा।
पुलिस को गुप्त सूचना मिली थी कि शराब तस्करी का नया कारवां अब घोड़ों के ज़रिए हो रहा है। थानाध्यक्ष राजेश कुमार ने एएसआई मोहम्मद असलम के नेतृत्व में टीम बनाई और बैरा परसौनी गांव में घेराबंदी कर दी। जैसे ही घोड़े की टापें सुनाई दीं, तस्कर भाग निकला और घोड़े को वहीँ छोड़ गया। अब बिहार पुलिस के रिकॉर्ड में एक नया नाम जुड़ गया है—“बरामद शराब वाहन: घोड़ा, नस्ल: देशी, रंग: खाकी।”
राजनीतिक चुप्पी और ‘घोड़ा पालो अभियान’ का नया अध्याय
सवाल ये है कि जब बिहार सरकार शराबबंदी को ‘मॉरल मॉडल’ बताकर देशभर में प्रचार करती है, तो सीमावर्ती इलाके में घोड़े की पीठ पर शराब कैसे दौड़ती है? क्या ‘घोड़ा नीति’ भी बनाई जाएगी? क्या दियारा में ‘हाई-स्पीड पैदल घोड़ा तस्करी निगरानी बल’ का गठन होगा?
पश्चिम चंपारण से लेकर कुशीनगर तक के राजनीतिक दलों ने फिलहाल चुप्पी की चादर ओढ़ ली है। राजद, जेडीयू, बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने इस विषय पर बयान देने से साफ इनकार कर दिया—शायद इस डर से कि कहीं अगला घोड़ा उनके ही इलाके से न निकले।
तस्करी का टेक्नोलॉजिकल इवोल्यूशन: बैलगाड़ी से ड्रोन तक, और अब घोड़ा
विशेषज्ञों का कहना है कि शराब तस्करी का ‘इकोलॉजिकल मॉडल’ अब घोड़ा-आधारित लॉजिस्टिक्स की ओर बढ़ रहा है। यह कम खर्चीला, बिना नंबर प्लेट वाला, GPS फ्री, और ग्रामीण इलाकों में निर्विघ्न घुसपैठ की ‘परफेक्ट मशीन’ है।
पिछले महीने भी नौतन पुलिस ने एक और घोड़ा जब्त किया था—जिसके साथ 34 लीटर शराब मिला था। स्थानीय लोग अब चुटकी ले रहे हैं कि अगली बार ऊंट, हाथी या गाय की पीठ पर भी शराब मिल जाए तो चौंकिएगा मत।
‘तस्कर रह गया, घोड़ा पकड़ा गया’ – बिहार पुलिस का अजब रिकॉर्ड
इस घटना के बाद पुलिस ने घोड़े को थाना परिसर में खड़ा कर दिया है। घोड़ा अभी पुलिस हिरासत में है लेकिन उसकी ‘जुबान’ अब भी बंद है। पुलिस अब घोड़े के मालिक का पता लगा रही है—जिसका नाम सामने आया है, पर वह फरार है। कुशीनगर पुलिस को मामले की निगरानी सौंपी गई है, लेकिन सूत्रों के अनुसार तस्कर ‘नदी के रास्ते नेपाल की ओर भाग निकला है।’
मामले में राजनीति के संकेत भी साफ हैं…
ग्रामीणों का कहना है कि यह तस्करी महज स्थानीय गिरोह की नहीं, बल्कि राजनीतिक संरक्षण में चल रहे संगठित नेटवर्क का हिस्सा है। घोड़े की तस्करी उसी वक्त होती है, जब पुलिस गश्ती में कमी होती है—और यह एक ‘संधिग्ध संयोग’ है।
सूत्रों का यह भी दावा है कि जिस तस्कर का नाम सामने आया है, उसका संबंध स्थानीय पंचायत चुनाव में एक प्रमुख प्रत्याशी से रहा है। अब देखना यह है कि जांच “घोड़े की पीठ से उतरकर” असली सियासी सवारी तक पहुँचती है या नहीं।
बिहार में शराबबंदी का कानून जितना सख्त है, शराब तस्करी उतनी ही रचनात्मक होती जा रही है। ताजा मामला साबित करता है कि तस्कर सरकार से दो कदम आगे ही नहीं, अब ‘चार पैर’ आगे हैं।
और अब जब अगली बार कोई घोड़ा दिखे तो पूछिए—”भाई, तू तस्कर है या टूरिस्ट?”