राजधानी पटना से सटे मसौढ़ी में एक बार फिर दिनदहाड़े हत्या की सनसनीखेज वारदात ने पूरे इलाके को दहला दिया है। मंगलवार को मसौढ़ी थाना क्षेत्र के ठाकुरबाड़ी मंदिर परिसर में 25 वर्षीय युवक राजेश चौधरी को तीन अज्ञात अपराधियों ने सिर में गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया। हत्या इतनी बेरहमी से की गई कि युवक की मौके पर ही मौत हो गई। यह घटना न सिर्फ क्षेत्र में भय और आतंक का कारण बनी, बल्कि राज्य की सुरक्षा व्यवस्था, राजनीतिक संलिप्तता और पुलिस की नाकामी को भी कठघरे में खड़ा कर गई है।
घटना का विस्तृत ब्यौरा: हत्या या साजिश?
जानकारी के अनुसार, मृतक की पहचान रहमतगंज दक्षिणी मोहल्ला, बेल बगीचा निवासी सूरज चौधरी के पुत्र राजेश चौधरी (उम्र 25) के रूप में हुई है। राजेश किसी कार्य से ठाकुरबाड़ी मंदिर परिसर में मौजूद था, जब तीन अपराधी एक बाइक पर सवार होकर वहां पहुंचे और बिना किसी बहस या चेतावनी के उसके सिर में पास से गोली मार दी।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, घटना को अंजाम देने के बाद हमलावर कुछ ही पलों में मौके से फरार हो गए। हत्या की यह वारदात न सिर्फ नियोजित प्रतीत होती है, बल्कि इसके पीछे किसी गंभीर आपराधिक साजिश या राजनीतिक द्वेष की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
राजनीतिक संदर्भ और आपराधिक गठजोड़
राजेश चौधरी को लेकर यह बात सामने आई है कि वह हाल के वर्षों में स्थानीय स्तर की राजनीति में सक्रिय हो रहा था। उसने कुछ प्रभावशाली नेताओं के कार्यक्रमों में भागीदारी भी शुरू कर दी थी और युवाओं के बीच एक स्थानीय चेहरा बनता जा रहा था।
कुछ सूत्र यह भी दावा कर रहे हैं कि राजेश का स्थानीय भूमि विवाद और कुछ असामाजिक तत्वों से टकराव भी था। चूंकि मसौढ़ी विधानसभा क्षेत्र में हमेशा से राजनीतिक गुटबाज़ी और बाहुबल का दखल रहा है, ऐसे में हत्या के पीछे राजनीतिक या आपराधिक सत्ताधारी ताकतों की भूमिका की जांच की आवश्यकता बताई जा रही है।
प्रशासनिक नाकामी या नियोजित चूक?
बिहार सरकार द्वारा हाल ही में पटना पुलिस में किए गए बड़े फेरबदल के बावजूद मसौढ़ी की इस घटना ने एक बार फिर से कानून-व्यवस्था की जर्जर स्थिति को उजागर कर दिया है।

पटना पुलिस के अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे जरूर, परंतु स्थानीय लोगों ने प्रशासन की धीमी प्रतिक्रिया और असंवेदनशीलता पर तीखा सवाल उठाया है। लोगों ने आरोप लगाया कि अगर मसौढ़ी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में दिनदहाड़े हत्या हो सकती है, तो आम जनता की सुरक्षा किसके भरोसे है?
विपक्ष का सरकार पर हमला: ‘जंगलराज की वापसी’
राजनीतिक हलकों में भी इस घटना को लेकर उबाल है। राजद, कांग्रेस और वाम दलों ने एक स्वर में इस हत्या को ‘नीतीश सरकार के कानून-व्यवस्था की विफलता’ बताया है। राजद प्रवक्ता ने कहा:
“सरकार बदल गई, मुख्यमंत्री का चेहरा भी बदला, लेकिन अपराधियों की हिम्मत और पुलिस की सुस्ती जस की तस बनी हुई है। ये नंगा नाच जंगलराज की वापसी नहीं तो और क्या है?”
सत्ताधारी दल जदयू और भाजपा की ओर से अब तक कोई ठोस बयान सामने नहीं आया है, जिससे आम जनता में राजनीतिक असंवेदनशीलता को लेकर भी नाराजगी देखी जा रही है।
आंकड़ों में बिहार की सच्चाई
बिहार में 2025 की शुरुआत से अब तक 1200 से अधिक हत्या के मामले दर्ज किए जा चुके हैं। अकेले पटना जिले में अप्रैल और मई महीने में 36 हत्या की वारदातें सामने आई हैं। इसके बावजूद, सरकारी प्रतिक्रिया महज बयानबाज़ी तक सीमित है।
विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार में आपराधिक गिरोहों और राजनीतिक संरक्षकों के बीच संबंध गहराते जा रहे हैं, जिससे हत्या जैसे जघन्य अपराधों पर भी अंकुश लगाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है।
स्थानीय जन प्रतिक्रिया और जनांदोलन की मांग
घटना के बाद परिजन और स्थानीय नागरिकों ने सड़क जाम कर विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने राजेश चौधरी के हत्यारों की जल्द गिरफ्तारी और मामले को स्पेशल टास्क फोर्स (STF) को सौंपने की मांग की।
स्थानीय बुद्धिजीवी वर्ग और सामाजिक संगठनों ने भी राजनीतिक दलों पर अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया है और मसौढ़ी में विशेष सुरक्षा योजना लागू करने की मांग की है।
हत्या एक व्यक्ति की नहीं, व्यवस्था की हुई है
राजेश चौधरी की हत्या केवल एक युवक की जिंदगी नहीं छीनती, बल्कि यह पूरे लोकतांत्रिक ढांचे और प्रशासनिक पारदर्शिता पर गहरा प्रश्नचिह्न लगा देती है। बिहार की राजनीति और प्रशासन को अब यह स्वीकार करना होगा कि केवल पुलिस अफसरों के ट्रांसफर से व्यवस्था नहीं बदलती।
इस मामले में यदि प्रभावी, निष्पक्ष और पारदर्शी जांच नहीं हुई, तो यह घटना भी अन्य हजारों अनसुलझे केस की तरह फाइलों में दफन हो जाएगी और बिहार की युवा शक्ति में एक और विश्वास की हत्या दर्ज की जाएगी।