राजधानी पटना और इसके उपनगरीय क्षेत्रों में कानून-व्यवस्था की हालत दिन-ब-दिन चिंताजनक होती जा रही है। हत्या, लूट और बलात्कार जैसी घटनाएं अब राजधानी की सीमाओं से निकलकर ग्रामीण बेल्ट तक को निगल रही हैं। ताजा मामला पालीगंज अनुमंडल के दुल्हिनबाजार थाना क्षेत्र का है, जहां बीती रात अपराधियों ने एक 13 वर्षीय किशोर की बर्बरता से हत्या कर दी। किशोर अरमान आलम को ईंट-पत्थर से पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया गया। इस निर्मम हत्या ने न केवल पूरे इलाके को दहला दिया है, बल्कि पुलिस की कार्यशैली और सरकार के ‘सुशासन’ के दावों पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
हत्या की पूरी वारदात: मासूम अरमान की बेरहमी से कुचली गई जिंदगी
घटना पटना जिले के पालीगंज अनुमंडल अंतर्गत दुल्हिनबाजार थाना क्षेत्र के लाला भंसारा गांव की है। मृतक की पहचान मंजूर आलम के 13 वर्षीय पुत्र अरमान आलम के रूप में हुई है। ग्रामीणों के अनुसार अरमान सोमवार की शाम से लापता था और देर रात तक उसका कुछ पता नहीं चल पाया। अगली सुबह गांव के बाहर एक सुनसान स्थान पर उसका क्षत-विक्षत शव मिला, जो खून से सना हुआ था और पास में ईंट और पत्थर पड़े थे—जिससे अंदाजा लगाया गया कि उसकी हत्या ईंट-पत्थरों से बुरी तरह पीटकर की गई।
स्थानीय लोगों की मानें तो अरमान गांव में बेहद सीधा-सादा और शालीन स्वभाव का बच्चा था, जो किसी से झगड़ा नहीं करता था। ऐसे में उसकी हत्या किसी गहरी साजिश की ओर इशारा करती है।
पुलिस और प्रशासन की ताबड़तोड़ कार्रवाई
घटना की सूचना मिलते ही दुल्हिनबाजार थाना प्रभारी दल-बल के साथ मौके पर पहुंचे और शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा। इसके बाद पालीगंज के डीएसपी-2 उमेश्वर चौधरी भी घटनास्थल पर पहुंचे और मामले की गहन छानबीन शुरू कर दी।
डीएसपी उमेश्वर चौधरी ने मीडिया को जानकारी देते हुए कहा:
“हमने मृतक के परिजनों से बातचीत की है और हर पहलू पर जांच की जा रही है। प्रथम दृष्टया यह मामला सुनियोजित हत्या का प्रतीत होता है। जल्द ही अपराधियों को चिन्हित कर गिरफ्तार किया जाएगा। हमने कई संदिग्धों को रडार पर लिया है और कुछ अहम सुराग भी हाथ लगे हैं।”
राजनीतिक और सामाजिक सन्नाटा: वोट बैंक के गणित में मासूम की मौत
पालीगंज अनुमंडल क्षेत्र इस समय चुनावी गतिविधियों के कारण राजनीतिक दृष्टिकोण से अति संवेदनशील बना हुआ है। स्थानीय पंचायतों से लेकर विधानसभा चुनावों तक, हर पार्टी जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण साधने में जुटी है। ऐसे में इस प्रकार की घटनाएं राजनीतिक पार्टियों की चुप्पी पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रही हैं।
विशेषकर दुल्हिनबाजार और पालीगंज जैसे क्षेत्रों में पिछले कुछ वर्षों से अपराध और राजनीति का एक अनकहा गठजोड़ भी देखा गया है। कई बार अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण मिलने की बात ग्रामीणों की चर्चा में रहती है, लेकिन ठोस कार्रवाई न होने से कानून-व्यवस्था रसातल में जा रही है।
बिहार पुलिस की चुनौतियाँ: अपराधियों से एक कदम पीछे?
पटना पुलिस इस समय कई मोर्चों पर एक साथ जूझ रही है। पालीगंज, बिहटा, मनेर, दुल्हिनबाजार जैसे क्षेत्रों में हाल के दिनों में लगातार हत्याएं, बलात्कार और अपहरण की घटनाएं घटी हैं। पिछले तीन दिनों की बात करें तो—
- पालीगंज में वेल्डिंग मिस्त्री की गोली मारकर हत्या
- इमामगंज में व्यापारी पर जानलेवा हमला
- दुल्हिनबाजार में किशोर अरमान की निर्मम हत्या
इन घटनाओं की श्रृंखला ने पुलिस की कार्यकुशलता को कटघरे में खड़ा कर दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि अपराधियों में अब कानून का खौफ नहीं रह गया है। दिनदहाड़े हत्याएं और रात के अंधेरे में लाशें मिलने का सिलसिला आम हो चला है।
परिजन का आक्रोश और गांव में मातम का माहौल
अरमान की हत्या के बाद लाला भंसारा गांव में मातम पसरा हुआ है। मृतक की मां और परिजन बिलख-बिलख कर रो रहे हैं। परिजनों ने हत्या के पीछे गहरी साजिश की आशंका जताई है, लेकिन डर और दबाव के कारण अभी तक किसी का नाम लेकर आरोप नहीं लगाया गया है।
गांव के वरिष्ठ नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार से मांग की है कि इस निर्मम हत्याकांड की सीबीआई स्तर की जांच होनी चाहिए, ताकि असली दोषी तक कानून की पहुंच हो सके।
क्या कहती है कानून-व्यवस्था की मौजूदा स्थिति?
बिहार सरकार भले ही अपराध पर नियंत्रण के दावे कर रही हो, लेकिन जमीन पर हकीकत इससे उलट है। एक के बाद एक हो रही हत्याओं और यौन अपराधों की घटनाएं यह दर्शाती हैं कि “सुशासन बाबू” की छवि गंभीर संकट में है। पुलिस के पास संसाधनों की कमी, राजनीतिक हस्तक्षेप और जमीनी स्तर पर खुफिया नेटवर्क का कमजोर होना—ये तमाम कारण हैं जो पुलिस को अपराध नियंत्रण में असफल बना रहे हैं।
सवाल वही है—कब तक चलेगा यह खूनी खेल?
13 वर्षीय अरमान की नृशंस हत्या एक बार फिर हमारे समाज, हमारी पुलिस और हमारी राजनीति से यह सवाल पूछती है—क्या मासूमों की जान अब भी इतनी सस्ती है? क्या गरीब, मेहनतकश, ग्रामीण परिवारों के बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसी की नहीं? क्या अपराधी हर वारदात के बाद आराम से अगले शिकार की तैयारी करते रहेंगे?
यह घटना एक चेतावनी है—अगर समय रहते सरकार और पुलिस ने ठोस कदम नहीं उठाए, तो बिहार की यह आग चुनावी सियासत तक को जला सकती है।