कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक चर्चित मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि नशे की हालत में नाबालिग लड़की के स्तन छूने की कोशिश को POCSO एक्ट के तहत दुष्कर्म (रेप) का प्रयास नहीं माना जा सकता। अदालत ने इसे ‘गंभीर यौन उत्पीड़न’ (Aggravated Sexual Assault) की श्रेणी में रखा है और आरोपी को जमानत दे दी है।
यह फैसला जस्टिस अरिजीत बनर्जी की एकल पीठ ने सुनाया, जिसने POCSO एक्ट की धाराओं की तकनीकी व्याख्या करते हुए कहा कि दुष्कर्म के प्रयास के लिए ‘पेनेट्रेशन’ या उसके स्पष्ट इरादे का प्रमाण आवश्यक है, जो इस मामले में अनुपस्थित था।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला एक नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीड़न के प्रयास से जुड़ा है। आरोप है कि एक युवक ने नशे की हालत में पीड़िता के स्तन छूने की कोशिश की थी।
- आरोप: नाबालिग का यौन उत्पीड़न करने की कोशिश
- परिस्थिति: आरोपी नशे में था
- मूल धारा: शुरू में POCSO एक्ट की धारा 5/6 (गंभीर यौन हमला) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
- कोर्ट का निष्कर्ष: यह कृत्य धारा 7 (यौन उत्पीड़न) के तहत आता है, न कि धारा 5/6 के तहत।
कोर्ट का तर्क क्या था?
- दुष्कर्म की परिभाषा में ‘पेनेट्रेशन’ या उसके इरादे का स्पष्ट प्रमाण होना चाहिए।
- नाबालिग के स्तन छूने का प्रयास बेहद गंभीर है लेकिन इसे दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं डाला जा सकता।
- आरोपी का नशे में होना अपराध को कम नहीं करता, लेकिन इसके कानूनी वर्गीकरण को प्रभावित करता है।
- POCSO एक्ट में हर यौन अपराध को ‘रेप’ की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता; हर अपराध की अलग धाराओं के अनुसार व्याख्या की जानी चाहिए।
सोशल मीडिया और कानूनी हलकों में बहस
कोर्ट के इस फैसले के बाद सोशल मीडिया, महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और कानूनी विशेषज्ञों के बीच तीखी बहस छिड़ गई है।
कुछ प्रमुख बिंदु जो उठाए गए:
- क्या यौन उत्पीड़न के मामलों में न्यायिक व्याख्या से न्याय में देरी या विकृति आ सकती है?
- क्या तकनीकी आधारों पर दुष्कर्म जैसे गंभीर आरोपों को कमतर किया जाना चाहिए?
- बाल यौन शोषण के मामलों में पीड़ित की सुरक्षा और मानसिक स्थिति को सर्वोच्च प्राथमिकता कैसे दी जाए?
कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला POCSO एक्ट की धाराओं की गहन कानूनी व्याख्या पर आधारित है, लेकिन इसने सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
यह देखना अहम होगा कि इस निर्णय का आने वाले समय में बाल यौन अपराधों के मुकदमों और अभियोजन पर क्या प्रभाव पड़ता है।
साथ ही, सरकार और न्यायपालिका को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नाबालिगों के खिलाफ यौन अपराधों में पीड़ितों को न्याय मिले, और कानून की व्याख्या पीड़ितों के हितों की रक्षा करने वाली हो।