बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट लेने को तैयार है। आगामी 2025 के विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी दलों ने अपनी-अपनी बिसात बिछानी शुरू कर दी है। इन तैयारियों के बीच राष्ट्रीय जनता दल (RJD), जो राज्य में महागठबंधन की धुरी बनी हुई है, अब संगठनात्मक और नेतृत्व स्तर पर बड़े बदलाव की दिशा में बढ़ रही है। लालू प्रसाद यादव की पार्टी अब एक बार फिर खुद को नए रूप में गढ़ने और चुनावी चुनौती के लिए तेजस्वी यादव की नेतृत्व क्षमता को धार देने में जुट गई है। यह परिवर्तन केवल चेहरों का नहीं, बल्कि पार्टी के भविष्य और चुनावी रणनीति की दिशा तय करने वाला एक निर्णायक मोड़ है।
बदलाव की भूमिका: उम्र, बीमारी या रणनीति?
RJD के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह की विदाई लगभग तय मानी जा रही है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने सार्वजनिक रूप से इस बात को स्वीकार किया है कि सिंह अब उम्रदराज़ हो चुके हैं और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं, इसलिए पार्टी अब “नए और ऊर्जावान नेतृत्व” की तलाश में है। शक्ति सिंह ने यह भी साफ किया कि 21 जून को नया प्रदेश अध्यक्ष, और 5 जुलाई को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया जाएगा।
लेकिन सवाल यह है कि क्या यह केवल एक स्वास्थ्य या उम्र आधारित निर्णय है, या फिर इसके पीछे चुनावी गणित और संगठनात्मक संरचना को नए तरीके से परिभाषित करने की रणनीति छिपी हुई है?
राजनीतिक पृष्ठभूमि और संगठन में उठती असहमति की आहट
पिछले कुछ महीनों से यह खबरें लगातार सामने आ रही थीं कि जगदानंद सिंह पार्टी से नाराज़ हैं और RJD कार्यालय में उनकी उपस्थिति नगण्य हो गई है। सूत्रों के मुताबिक, तेजस्वी यादव और जगदानंद के बीच कई बार रणनीतिक मुद्दों पर मतभेद उभर कर सामने आए हैं। तेजस्वी के नए नेतृत्व मॉडल और युवाओं को वरीयता देने की नीति ने पार्टी के पुराने धुरंधरों को असहज किया है।
अप्रैल में दिल्ली AIIMS में लालू यादव से सिंह की ढाई घंटे की मुलाकात को भी इसी बदलाव की पृष्ठभूमि से जोड़ा जा रहा है। यह माना जा रहा है कि लालू यादव ने खुद जगदानंद को सम्मानजनक विदाई का रास्ता सुझाया है, ताकि संगठन में बिना विवाद के सत्ता हस्तांतरण हो सके।
2025 चुनाव से पहले नेतृत्व में बदलाव क्यों?
इस सवाल का उत्तर राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी गहरा है। RJD को 2020 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी होने का गौरव मिला, लेकिन सत्ता से दूर रह जाना उसके लिए राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक दोनों ही मोर्चों पर झटका था। इस बार पार्टी कोई चूक नहीं करना चाहती।
नेतृत्व में बदलाव की यह कवायद कई स्तरों पर चुनावी रणनीति को पुनः परिभाषित करने का संकेत है:
- युवाओं को नेतृत्व में लाना: तेजस्वी यादव की अगुआई में पार्टी अब युवा चेहरों और जमीनी कार्यकर्ताओं को नेतृत्व में लाना चाहती है। इससे न केवल संगठन में ऊर्जा आएगी, बल्कि जातीय समीकरणों में भी संतुलन बनाया जा सकेगा।
- जमीनी स्तर पर संवाद: पुराने अध्यक्षों की छवि ‘दूरस्थ’ नेतृत्व की बन गई थी। नया नेतृत्व क्षेत्रीय नेताओं और जनता के बीच अधिक संवाद स्थापित कर सकेगा।
- गठबंधन की रणनीति में लचीलापन: नई कार्यकारिणी महागठबंधन के अन्य दलों के साथ संवाद, सीट बंटवारा और चुनावी समझौते को अधिक व्यावहारिक तरीके से सुलझाने में सक्षम होगी।
चुनावी रणनीति: किस दिशा में जा रही है RJD?
RJD के इस बदलाव को समझने के लिए हमें बिहार के चुनावी परिदृश्य और सामाजिक-सांस्कृतिक समीकरणों पर नजर डालनी होगी। आगामी चुनाव में पार्टी की रणनीति कुछ मुख्य बिंदुओं पर केंद्रित रहने की संभावना है:
1. जातीय समीकरणों का पुनर्गठन
RJD परंपरागत रूप से MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण की पार्टी रही है, लेकिन हाल के वर्षों में अति पिछड़ों (EBCs) और दलितों के बीच बीजेपी और JDU की पकड़ मजबूत हुई है। पार्टी अब कोशिश कर रही है कि कुशवाहा, पासवान, मल्लाह जैसे वर्गों को फिर से जोड़ा जाए। नए अध्यक्ष का चयन इन्हीं वर्गों में से किया जा सकता है।
2. तेजस्वी की ‘विकास’ ब्रांडिंग
तेजस्वी यादव लगातार रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को केंद्र में रखकर खुद को एक ‘विकास पुरुष’ के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। RJD की पूरी चुनावी रणनीति अब पारंपरिक नारों की बजाय युवाओं के मुद्दों और शासन क्षमता पर आधारित हो रही है।
3. महागठबंधन में नेतृत्व की पुनर्स्थापना
JDU और कांग्रेस जैसे घटक दलों के बीच नेतृत्व को लेकर अस्पष्टता RJD के लिए चुनौती है। नया राष्ट्रीय अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो राजनीतिक वार्ताओं और गठबंधन की रणनीति को प्रभावी ढंग से संचालित कर सके।
4. BJP को घेरने की रणनीति
RJD का मुख्य चुनावी मुकाबला बीजेपी से है। पार्टी भूमि सर्वे, महंगाई, बेरोजगारी, जातीय जनगणना और संवैधानिक संस्थाओं के हनन जैसे मुद्दों को हथियार बनाकर बीजेपी को घेरेगी।
कौन हो सकता है नया अध्यक्ष? संभावनाओं पर एक नजर
- प्रदेश अध्यक्ष के लिए भोला यादव, सुधाकर सिंह या आलोक मेहता जैसे नाम चर्चा में हैं। इन सभी नेताओं का संगठन पर मजबूत पकड़ है और जातीय संतुलन में भी इनकी भूमिका अहम हो सकती है।
- राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए यदि लालू यादव पद छोड़ते हैं (या प्रतीकात्मक पद पर रहते हैं), तो संभावना है कि तेजस्वी यादव को ही पूरी कमान सौंपी जाए, जिससे पार्टी में सत्ता का औपचारिक हस्तांतरण हो जाए।
बदलाव या सियासी पुनर्जन्म?
RJD का यह नेतृत्व परिवर्तन केवल संगठनात्मक फेरबदल नहीं है, यह एक प्रकार से पार्टी का ‘राजनीतिक पुनर्जन्म’ है। यह उस पार्टी की नई पहचान गढ़ने की कोशिश है, जो अब लालू युग से निकलकर तेजस्वी युग में प्रवेश कर रही है। यह परिवर्तन भावनात्मक भी है और रणनीतिक भी। यदि RJD इस परिवर्तन को संतुलन और दक्षता के साथ लागू कर पाती है, तो यह ना सिर्फ पार्टी को पुनः सत्ता के करीब ले जाएगा, बल्कि बिहार की राजनीति को भी एक नई दिशा देगा।
आगामी महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह परिवर्तन RJD को ‘सबसे बड़ी पार्टी’ से ‘सत्तारूढ़ पार्टी’ तक पहुंचा पाता है या नहीं।