बिहार में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव 2025 की आहट तेज़ हो रही है, वैसे-वैसे राजनेताओं की ज़मीनी सक्रियता भी स्पष्ट रूप से देखी जा रही है। बड़हरा विधानसभा क्षेत्र में हाल ही में आयोजित विशाल स्वास्थ्य एवं नेत्र शिविर ने न केवल हजारों ग्रामीणों को राहत दी, बल्कि एक बार फिर यह संकेत भी दिया कि रणविजय सिंह ‘राजापुर वाले’ आने वाले चुनावी समर में अपनी भूमिका को लेकर पूरी तरह तैयार और प्रतिबद्ध हैं।
स्वास्थ्य सेवा की आड़ में राजनीति या ज़मीनी सेवा का उदाहरण?
इस शिविर का आयोजन रणविजय सिंह ‘राजापुर वाले’ के सहयोग से किया गया, जिसमें पटना के पारस हॉस्पिटल और ASG आई हॉस्पिटल की विशेषज्ञ टीम ने भाग लिया। लगभग 32 विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम, जिनमें कार्डियोलॉजिस्ट से लेकर न्यूरोसर्जन और नेत्र रोग विशेषज्ञ तक शामिल थे, अपने साथ अत्याधुनिक उपकरणों के साथ पहुंचे।
इस आयोजन में शामिल सेवाओं में नेत्र परीक्षण, चश्मा वितरण, विभिन्न बीमारियों की जांच और मुफ्त दवाइयों का वितरण शामिल था। अनुमान है कि इस एकदिवसीय शिविर में 5000 से अधिक लोग लाभान्वित हुए।

राजनीतिक संदेश भी साफ: बड़हरा को ‘बदलाव’ की जरूरत
रणविजय सिंह ने मंच से साफ कहा,
“हम चुनाव के नाम पर नहीं, सेवा के नाम पर आपके बीच हैं। जब तक बड़हरा का हर नागरिक स्वस्थ और सशक्त नहीं हो जाता, हमारा संघर्ष जारी रहेगा।”
उनका यह वक्तव्य साफ़ संकेत देता है कि वे राजनीति में सेवा को प्राथमिकता दे रहे हैं, लेकिन इसके पीछे 2025 के चुनावी समीकरण भी छिपे नहीं हैं।
बड़हरा क्षेत्र, जो लंबे समय से चिकित्सा और आधारभूत संरचनाओं की उपेक्षा झेलता रहा है, अब धीरे-धीरे स्वास्थ्य, शिक्षा और युवाओं के रोजगार जैसे मुद्दों पर राजनीतिक पुनर्गठन का गवाह बन रहा है। और रणविजय सिंह खुद को इसी नए बदलाव का नेतृत्वकर्ता बना कर पेश कर रहे हैं।
जनता के दिल से उठी आवाज़: “रणविजय हमारे संकटमोचक हैं”
एक ग्रामीण ने भावुक होकर कहा—
“मैं कई दिनों से बीमार था लेकिन जांच और इलाज के लिए पैसे नहीं थे। रणविजय जी के इस स्वास्थ्य शिविर ने हमें शहर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ने दी। ये हमारे नेता नहीं, हमारे मसीहा हैं।”
ऐसी गवाही न केवल एक आयोजन की सफलता दर्शाती है, बल्कि रणविजय सिंह के प्रति जनविश्वास और भावनात्मक जुड़ाव को भी उजागर करती है — जो किसी भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

स्वास्थ्य के बहाने मतदाता तक सीधा संवाद
यह शिविर सिर्फ एक सामाजिक सेवा नहीं बल्कि एक रणनीतिक जनसंपर्क अभियान भी था, जिसमें बिना राजनीतिक रैली की औपचारिकता के, हजारों लोगों से प्रत्यक्ष संवाद स्थापित किया गया। जनता को तत्काल लाभ भी मिला और रणविजय सिंह को व्यक्तिगत तौर पर लोगों तक पहुंचने का सशक्त मंच।
बड़हरा जैसे ग्रामीण क्षेत्र में, जहां बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं अक्सर नदारद होती हैं, इस तरह के प्रयासों को मूलभूत अधिकार के रूप में देखना और इसे राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना—यह एक नई राजनीति की शुरुआत भी कही जा सकती है।
रणविजय सिंह की रणनीति: समग्र विकास के एजेंडे के साथ आगे बढ़ने का दावा
अपने संबोधन में उन्होंने स्पष्ट किया:
“हमारा संघर्ष केवल स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है। शिक्षा, युवाओं को रोजगार, महिला सशक्तिकरण और कृषि विकास—हर क्षेत्र में बदलाव हमारा लक्ष्य है। बड़हरा मेरा परिवार है और जब तक हर घर में खुशहाली नहीं आती, हम चैन से नहीं बैठेंगे।”
यह बयान उस दीर्घकालिक दृष्टिकोण की ओर संकेत करता है जिसे रणविजय सिंह अपनाने की बात कर रहे हैं। सेवा के साथ विजन और जन सरोकार के साथ राजनीतिक एजेंडा—यह त्रिकोणीय रणनीति उन्हें अन्य दावेदारों से अलग बनाती है।

क्या यह बड़हरा में चुनावी समीकरणों को बदलेगा?
बड़हरा विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण, स्थानीय नेतृत्व की विश्वसनीयता और विकास का मुद्दा—तीनों ही अहम कारक हैं। रणविजय सिंह ‘राजापुर वाले’ इन तीनों क्षेत्रों में खुद को मज़बूती से स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
- जातीय समीकरण में वे वैश्यों, कुशवाहाओं और सवर्ण मतदाताओं में विशेष पकड़ बना चुके हैं।
- सेवा के माध्यम से विश्वास अर्जित कर, वे अपने लिए एक समर्पित समर्थक वर्ग तैयार कर रहे हैं।
- विकास का ठोस एजेंडा उन्हें भावनात्मक राजनीति से आगे ले जाकर ठोस विकल्प के रूप में पेश करता है।
स्वास्थ्य शिविर से उठती चुनावी गूंज
यह स्वास्थ्य शिविर केवल चिकित्सा सेवा नहीं, बल्कि चुनावी मैदान की बिसात बिछाने की एक चुपचाप रणनीति भी थी। रणविजय सिंह ने चुनावी घोषणा नहीं की है, लेकिन उनके कदम, उनकी शैली और उनका जनसंपर्क अभियान साफ संकेत देते हैं कि बड़हरा का यह बेटा अब बड़ी लड़ाई के लिए तैयार हो रहा है।
बड़हरा का भविष्य अब जनता के हाथ में है—क्या सेवा की राजनीति चुनावी हवा बदल पाएगी? या पारंपरिक समीकरण एक बार फिर हावी होंगे?
आने वाले कुछ महीनों में यह साफ हो जाएगा कि बड़हरा किस दिशा में आगे बढ़ेगा—सेवा की राजनीति या समीकरणों की सत्ता?