बिहार में शराबबंदी एक ‘ऐतिहासिक फैसला’ था – लेकिन लगता है ये फैसला अब पुलिस वालों के लिए ‘बिजनेस मॉडल’ बन गया है। ताजा मामला ऐसा है जिसे पढ़कर आप सोच में पड़ जाएंगे कि बिहार में असली माफिया कौन है – शराब बेचने वाला, या कानून की वर्दी पहन कर उसकी गाड़ी खींचने वाला?
बेगूसराय जिले के बखरी थाना क्षेत्र में जो कुछ हुआ, वो एक बॉलीवुड स्क्रिप्ट जैसा है — बस निर्देशक की जगह डीएसपी साहब पहुंच गए और कैमरे की जगह जांच बैठ गई।
वर्दी में ‘वाइन वैगन’: पुलिस बनी सप्लाई चेन का हिस्सा
शराबबंदी के बावजूद बिहार में शराब का कारोबार ऐसे चल रहा है जैसे ये कोई परंपरा हो। लेकिन जब इस परंपरा को संरक्षित करने का बीड़ा पुलिस खुद उठाए, तो समझिए कि शराब माफिया को मार्केटिंग की भी ज़रूरत नहीं।
सूत्रों के अनुसार, बखरी थाने के टाइगर मोबाइल यूनिट के तीन जवान – नियाज आलम, चंदन कुमार और शशि कुमार – बड़े ही नाटकीय अंदाज़ में शराब तस्करी में लिप्त पाए गए। ये लोग शराब की तस्करी को एक ‘ऑपरेशनल मिशन’ की तरह अंजाम दे रहे थे। पिकअप गाड़ी, मोबाइल नेटवर्क, और वर्दी – सब कुछ था उनके पास। बस लाज और कानून की परवाह नहीं थी।
‘ऑन ड्यूटी’ डीलिंग: पकड़े गए मोबाइल में निकली बोतल-बातचीत की पूरी चैट हिस्ट्री
जब पुलिस अधिकारियों को इनके कारनामों की भनक लगी, तो एक सुनियोजित छापेमारी की गई। सलौना रेलवे स्टेशन के पास गाड़ी रोकी गई – तीनों टाइगर मोबाइल जवान शराब माफियाओं के साथ कुछ “डील” कर रहे थे।
माफिया मौके से फरार हो गए, लेकिन तीनों जवानों के चेहरे पर वो बेशर्मी की मुस्कान थी जो कह रही थी — “हम तो ड्यूटी पर हैं!”
जांच के दौरान जब इनके मोबाइल फोन खंगाले गए तो ऐसा लगा जैसे मोबाइल नहीं, बल्कि शराब माफियाओं का डेटाबेस हो। व्हाट्सएप चैट में ‘1 बोतल रम’, ‘3 केस ब्लैक लेबल’, ‘आज शाम तक डिलीवरी’ जैसे मैसेज मिलना शुरू हुए।
कॉल डिटेल रिकॉर्ड में एक माफिया ने लिखा था:
“भाई साहब, शाम को गाड़ी भेज दीजिए, साथ में वो एक बोतल एक्स्ट्रा चाहिए जो पिछली बार छूट गई थी।”
और जवाब आया:
“हां, और थाने वाली गाड़ी को मत भेजना, पहचान हो गई है।”
डीएसपी बोले: “ये पुलिस नहीं, पुलिसिया गुंडे हैं!”
बखरी थाना में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान डीएसपी कुंदन कुमार ने आंखों में गुस्सा और चेहरे पर शर्मिंदगी के साथ कहा:
“तीनों जवानों को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया गया है। ये पुलिस नहीं, बल्कि ‘प्रोफेशनल सप्लायर्स’ हैं। विभागीय कार्रवाई तेज़ी से होगी और इनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा भी चलेगा।”
उन्होंने यह भी खुलासा किया कि माफियाओं से पूछताछ में पता चला कि हर रोज़ की शराब बिक्री में से एक बोतल “साझेदारी” के तहत टाइगर मोबाइल को दी जाती थी। यानी वर्दी में ‘रॉयल्टी मॉडल’ चलता था।
22 लीटर देसी + 3 लीटर विदेशी + 17,500 कैश = पुलिसिया प्रमोशन का नया पैमाना?
गिरफ्तार माफियाओं के पास से जो बरामदगी हुई वो भी किसी ठेके की दुकान से कम नहीं थी:
- 22 लीटर देसी शराब (लोकल टच)
- 3 लीटर विदेशी शराब (ब्रांडेड बिजनेस)
- ₹17,500 नकद
- 8 मोबाइल फोन – हर एक पर ‘कॉल मी व्हेन यू वांट रम’ जैसी चैट्स मौजूद
“135 कार्टन सप्लाई हो चुकी थी… मगर गाड़ी देख कर भाग गए”: पर्दाफाश में नया ट्विस्ट
एक गिरफ्तार माफिया ने बताया कि गुरुवार रात को 135 कार्टन विदेशी शराब की एक बड़ी खेप आई थी। सब कुछ प्लान के मुताबिक चल रहा था। लेकिन जैसे ही असली थाने की गाड़ी दिखी, सप्लायर वाहन समेत फरार हो गया।
इस खुलासे से साफ हो गया कि अवैध शराब कारोबार अब गांव-कस्बों में नहीं, थानों से ऑपरेट होता है। एक तरफ जनता शराबबंदी के नाम पर सज़ा भुगत रही है, दूसरी ओर ‘कानून के रखवाले’ ही ठेकेदारी कर रहे हैं।
राजनीतिक साज़िश या सिस्टम का पतन?
अब सवाल उठता है — क्या शराबबंदी सिर्फ आम जनता पर लागू है? जब वही पुलिस, जो शराब माफियाओं को पकड़ने के लिए बनी है, खुद ही उनके ‘डिस्ट्रीब्यूटर’ बन जाए, तो जनता कहां जाएगी?
बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले ऐसे मामले सामने आना यह भी संकेत देते हैं कि राजनीतिक संरक्षण के बिना ऐसा संगठित अपराध नहीं हो सकता। विपक्ष ने पहले भी आरोप लगाया था कि “शराबबंदी सिर्फ पोस्टर पर है, ज़मीनी हकीकत में बिहार ठेकेदारों का राज्य बन चुका है”।
“पुलिसिया ठेका राज” की आंच मुख्यमंत्री आवास तक?
अब ये देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले की आंच कितनी ऊपर तक जाती है। क्या सिर्फ तीन पुलिस वालों को निलंबित कर देने से बात खत्म हो जाएगी? या जांच की आंच मुख्यमंत्री कार्यालय तक भी पहुंचेगी?
क्योंकि सवाल अब सिर्फ शराबबंदी का नहीं है, बल्कि पुलिस की विश्वसनीयता का है।
और जब वर्दी ही ठेकेदारी करने लगे, तो जनता कहां पीए, और किस पर यकीन करे?