जब ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान को लेकर भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने चौकसी बढ़ाई, तब एक ऐसा खुलासा हुआ जिसने सिर्फ सीमाओं की सुरक्षा नहीं, बल्कि भारत के हवाई अड्डों की परतें भी खंगालने को मजबूर कर दिया। इस बार सवाल किसी आतंकवादी संगठन पर नहीं, बल्कि भारत के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले 9 अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों की ‘ग्राउंड हकीकत’ पर उठ रहे हैं—वजह है तुर्की की कंपनी ‘चेलबी एविएशन होल्डिंग’ और उसका भारतीय एविएशन सेक्टर में बढ़ता प्रभुत्व।
भारत के एयरपोर्ट और एक विदेशी कंपनी की पैठ: खतरे की घंटी?
2009 में दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से एंट्री करने वाली तुर्की की कंपनी ‘चेलबी एविएशन होल्डिंग’ (Çelebi Aviation Holding) ने धीरे-धीरे भारत के 9 बड़े अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर ‘ग्राउंड हैंडलिंग ऑपरेशंस’ का ऐसा नेटवर्क खड़ा किया, जो किसी देश की सामरिक आत्मनिर्भरता पर सवाल खड़े करता है। जिन एयरपोर्ट्स पर इस कंपनी की मौजूदगी दर्ज की गई है, उनमें शामिल हैं:
- इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट, दिल्ली
- छत्रपति शिवाजी महाराज इंटरनेशनल एयरपोर्ट, मुंबई
- केम्पेगौड़ा इंटरनेशनल एयरपोर्ट, बेंगलुरु
- राजीव गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट, हैदराबाद
- कोचीन इंटरनेशनल एयरपोर्ट
- कन्नूर इंटरनेशनल एयरपोर्ट
- चौधरी चरण सिंह इंटरनेशनल एयरपोर्ट, लखनऊ
- लाल बहादुर शास्त्री इंटरनेशनल एयरपोर्ट, वाराणसी
- सरदार वल्लभभाई पटेल इंटरनेशनल एयरपोर्ट, अहमदाबाद
इनमें से कई एयरपोर्ट भारत की रणनीतिक, व्यापारिक और सैन्य दृष्टि से बेहद अहम हैं।
सिर्फ बैगेज नहीं, डेटा भी हैंडल कर रही है चेलबी!
‘चेलबी’ सिर्फ बैगेज लोडिंग-अनलोडिंग या कार्गो ट्रैकिंग नहीं कर रही, बल्कि वह चेकइन, बोर्डिंग, लाउंज मैनेजमेंट, वीआईपी मूवमेंट, स्पेशल असिस्टेंस जैसी गतिविधियों से लेकर प्लेन पुशबैक, एयरक्राफ्ट मार्शलिंग, केबिन क्लीनिंग, वॉटर सर्विसेज और ग्राउंड कम्युनिकेशन जैसी गोपनीय प्रक्रियाओं में भी शामिल है।
सवाल यह उठता है कि क्या इतनी व्यापक पहुंच के ज़रिए चेलबी भारत के हवाई अड्डों की रणनीतिक जानकारी जुटा रही है, जो तुर्की के माध्यम से पाकिस्तान तक पहुंच सकती है?
विशेषज्ञों के मुताबिक, ग्राउंड हैंडलिंग एक्सेस के जरिए न केवल वीआईपी मूवमेंट, कार्गो डिटेल्स बल्कि सुरक्षात्मक शेड्यूलिंग और इंटेलिजेंस ट्रैफिक तक की जानकारी एकत्र की जा सकती है। ऐसे में इस डेटा का किसी दुश्मन देश के हाथ लगना राष्ट्रीय सुरक्षा में सेंध लगाने के बराबर है।
तुर्की की भूमिका: क्या पाकिस्तान के साथ साजिशन साझेदारी?
गौरतलब है कि तुर्की हाल के वर्षों में न केवल पाकिस्तान का मुखर समर्थक रहा है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र और OIC जैसे मंचों पर वह कश्मीर मुद्दे पर भारत विरोधी बयान देता रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मिली खुफिया जानकारियों ने इस संदेह को और गहरा किया कि तुर्की और पाकिस्तान के बीच खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान हो सकता है। ऐसे में भारत में मौजूद एक तुर्की मूल की एविएशन कंपनी कितनी सुरक्षित है, इस पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।
क्या की जा रही है कोई सुरक्षा समीक्षा?
अब यह चर्चा उठ रही है कि क्या भारत सरकार या DGCA (Directorate General of Civil Aviation) ने चेलबी की गतिविधियों का कोई ऑडिट या इंटेलिजेंस समीक्षा की है? क्या CISF या IB जैसी एजेंसियों को इन एयरपोर्ट्स की सुरक्षा जांच में चेलबी की मौजूदगी पर विशेष सतर्कता दी गई है?
भारत की सुरक्षा नीति के जानकारों का मानना है कि किसी भी देश के रणनीतिक क्षेत्र में 100% विदेशी दखल, वह भी ऐसे देश से जो स्पष्ट रूप से भारत विरोधी नीति अपनाए हुए है, राष्ट्रहित के विरुद्ध है। इस संदर्भ में भारत को तुरंत एक सुरक्षा-आधारित पुनर्निरीक्षण नीति लानी चाहिए, जिससे संवेदनशील इन्फ्रास्ट्रक्चर तक विदेशी कंपनियों की पहुंच सीमित हो।
क्या अब समय आ गया है ‘एविएशन आत्मनिर्भरता’ का?
यह वक्त है जब भारत को सिर्फ रक्षा में ही नहीं, बल्कि एविएशन ग्राउंड ऑपरेशंस में भी आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। इंडियन कंपनियों को इस क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए नीति और पूंजी दोनों की जरूरत है। इससे जहां घरेलू रोजगार सृजन होगा, वहीं देश की हवाई सीमाएं और ज्यादा सुरक्षित भी बनेंगी।
तुर्की की कंपनी चेलबी एविएशन के भारत के सबसे संवेदनशील हवाई अड्डों में मौजूदगी सिर्फ एक व्यापारिक समझौता नहीं, बल्कि राष्ट्र की संप्रभुता और सुरक्षा का मुद्दा बन चुका है। अब भारत को यह तय करना है कि वह अपने रणनीतिक संस्थानों की चाबी किसके हाथों में सौंपता है—दोस्तों के या दुश्मनों के?