Friday, September 5, 2025
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450 गाड़ियां 20 मिनट में! पटना एयरपोर्ट का अराइवल जोन यात्री यातना का नया केंद्र

बिहार की राजधानी पटना में हाल ही में उद्घाटित जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का नया टर्मिनल भवन सरकार की आधारभूत संरचना पर केंद्रित विकास नीति का ‘शोकेस प्रोजेक्ट’ माना जा रहा था। लेकिन उद्घाटन के महज चार दिन बाद ही इसकी अव्यवस्था, विशेषकर अराइवल ज़ोन में उत्पन्न हो रहे गंभीर यातायात संकट, न केवल आम जनता के लिए समस्या बन गया है बल्कि सरकार और एयरपोर्ट प्रबंधन की योजना एवं क्रियान्वयन क्षमताओं पर भी गहरा सवाल खड़ा कर रहा है।

चार दिन में ही चौपट व्यवस्था: यात्री असुविधा पर बढ़ता जन आक्रोश

बीते शनिवार शाम 5:15 से 5:50 बजे के बीच चार फ्लाइटों के लैंडिंग के दौरान महज 20 मिनट में 450 से अधिक गाड़ियां अराइवल ज़ोन में पहुंच गईं। परिणामस्वरूप स्थिति इतनी बिगड़ गई कि यात्रियों को बाहर निकलने में 25 मिनट तक का समय लग गया। यह स्थिति न तो आकस्मिक थी, न ही अप्रत्याशित। विशेषज्ञों का मानना है कि एयर ट्रैफिक के आंकड़ों और पीक टाइम के ट्रेंड्स को देखते हुए ऐसी स्थिति की पूर्व तैयारी होनी चाहिए थी।

पीक अवर — विशेषकर रात 9:00 से 9:45 और दोपहर 11:00 से 11:55 के बीच — की बात करें, तो इन समयों में लगभग हर 5-10 मिनट पर फ्लाइट लैंड कर रही हैं, जिससे अराइवल ज़ोन में यात्री और वाहन एक साथ उमड़ पड़ते हैं। नतीजा यह है कि पिक एंड ड्रॉप की संकल्पना पूरी तरह फेल हो चुकी है। अगर कोई यात्री 7 मिनट से अधिक समय ले लेता है, तो उसे तत्काल पार्किंग शुल्क देना पड़ता है, जो कि अधिकांश यात्रियों के अनुसार अनुचित और अव्यवहारिक है।

सरकारी दावों और जमीनी सच्चाई में अंतर

राज्य सरकार ने इस टर्मिनल को ‘बिहार की बदलती तस्वीर’ का प्रतीक बताते हुए इसके उद्घाटन को भव्य कार्यक्रम के रूप में प्रस्तुत किया था। खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्र सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने इस परियोजना को राष्ट्रीय गौरव से जोड़ा था। लेकिन अब जब बुनियादी व्यवस्थाएं जैसे यातायात नियंत्रण, पार्किंग मैनेजमेंट और यात्री सुविधा ही चरमराई हुई हैं, तो यह पूछना स्वाभाविक है कि क्या यह केवल उद्घाटन के लिए तैयार किया गया प्रोजेक्ट था?

विपक्षी दलों ने इसी मुद्दे को लेकर सरकार पर हमला बोला है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने मीडिया से कहा, “बिहार में विकास का मतलब केवल उद्घाटन समारोह और कागजी योजनाएं रह गई हैं। जनता की वास्तविक सुविधा पर सरकार का ध्यान नहीं है। हवाई अड्डे की हालत बता रही है कि राज्य में कितनी अव्यवस्था है।”

प्रशासन का जवाब: “अस्थायी समस्या है”, लेकिन समाधान की स्पष्ट योजना नहीं

एयरपोर्ट निदेशक केएम नेहरा ने बयान जारी करते हुए कहा कि “अभी केवल अराइवल ज़ोन में अस्थायी समस्या है। यात्री और उनके परिजन कृपया मल्टी-लेवल पार्किंग का प्रयोग करें, ताकि व्यवस्था सुचारू बनी रहे।” उन्होंने यह भी माना कि नई टर्मिनल भवन में वाहनों का अनियंत्रित आगमन एक बड़ी चुनौती बन रहा है और इसके समाधान में समय लगेगा।

ट्रैफिक एएसपी आलोक सिंह ने कहा कि “एयरपोर्ट के आसपास अनधिकृत वाहन पार्किंग पर कार्रवाई की जाएगी। ट्रैफिक पुलिस अभियान चलाकर नियम तोड़ने वालों पर जुर्माना लगाएगी।”

लेकिन सवाल यह है कि जब यात्री पार्किंग शुल्क से बचने के लिए हज भवन, चितकोहरा पुल, शेखपुरा मोड़, पीर अली मार्ग, और वेटनरी कॉलेज जैसे क्षेत्रों में वाहन खड़ा कर रहे हैं, तो क्या केवल जुर्माना लगाना पर्याप्त समाधान है? स्थानीय सड़कें अस्थायी पार्किंग में तब्दील हो चुकी हैं और जैसे ही कोई फ्लाइट लैंड होती है, ये वाहन अराइवल ज़ोन में धावा बोल देते हैं, जिससे भारी जाम लग जाता है।

नियोजन की असफलता या राजनीतिक जल्दबाज़ी?

विकास योजनाओं में केवल निर्माण कार्य पूरा कर उद्घाटन कर देना ही पर्याप्त नहीं होता। एयरपोर्ट जैसी उच्च संवेदनशीलता वाली संरचनाओं में ‘इंटीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम’, रियल-टाइम मॉनिटरिंग और व्यवहारिक यात्री प्रबंधन रणनीतियां बेहद आवश्यक होती हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि इस परियोजना में इन पहलुओं की या तो अनदेखी की गई या उन्हें लागू करने से पहले ही उद्घाटन कर दिया गया।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह मामला केवल यातायात व्यवस्था का नहीं, बल्कि *“लोकप्रियता की राजनीति” बनाम *“जमीनी क्रियान्वयन” का है। राज्य सरकार ने चुनावी साल को ध्यान में रखते हुए इस प्रोजेक्ट को शीघ्रता से जनता को समर्पित किया, लेकिन परिणामस्वरूप अधूरी तैयारियों के चलते आम जनता को भारी असुविधा झेलनी पड़ रही है।

आर्थिक पक्ष: पार्किंग शुल्क बना विवाद का कारण

पार्किंग शुल्क की दरें इस प्रकार हैं:

  • कार: आधा घंटा – ₹20, 30 मिनट से 2 घंटे – ₹60
  • बाइक: आधा घंटा – ₹10, फिर हर घंटे – ₹5 अतिरिक्त

यात्रियों का आरोप है कि समय कम और दरें अनुचित हैं। किसी भी उड़ान के उतरने के बाद भीड़ से बाहर निकलने में ही 7-10 मिनट लगते हैं। इस स्थिति में मुफ्त पिक एंड ड्रॉप जैसी सुविधा केवल नाम मात्र रह गई है। ये दरें जहां एक ओर एयरपोर्ट प्रबंधन के राजस्व के लिए आवश्यक हैं, वहीं जनता के दृष्टिकोण से यह अतिरिक्त बोझ है।

सार्वजनिक विश्वास की परीक्षा पर सरकार

पटना एयरपोर्ट की अव्यवस्था एक बार फिर दिखा रही है कि अधूरी तैयारियों के साथ विकास परियोजनाओं को जनता को सौंपना कितनी बड़ी भूल हो सकती है। सरकार को चाहिए कि वह केवल उद्घाटन और घोषणाओं तक सीमित न रहकर उन ढांचागत और प्रणालीगत कमियों को दूर करे जो नागरिकों को रोजाना प्रभावित कर रही हैं।

इस परिस्थिति में सरकार और एयरपोर्ट प्राधिकरण के लिए यह एक अवसर भी है — अपनी योजनाओं को पुनः मूल्यांकित करने, जन भागीदारी को प्राथमिकता देने और बेहतर समन्वय के ज़रिए व्यवस्थाओं को सुधारने का। अन्यथा यह परियोजना भी राज्य की उन अधूरी योजनाओं की सूची में शामिल हो जाएगी जो शुरुआत में तो खूब चमकीं, लेकिन धीरे-धीरे जनता के लिए बोझ बन गईं।

Amlesh Kumar
Amlesh Kumar
अमलेश कुमार Nation भारतवर्ष में सम्पादक है और बीते ढाई दशक से प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिकता जगत की अनुभव के साथ पंजाब केशरी दिल्ली से शुरुवात करते हुए दिनमान पत्रिका ,बिहारी खबर, नवबिहार, प्रभात खबर के साथ साथ मौर्य टीवी, रफ्तार टीवी,कशिश न्यूज, News4Nation जैसे मीडिया हाउस में काम करते राजनीति, क्राइम, और खेल जैसे क्षेत्रों में बेबाक और बेदाग पत्रकारिता के लिए जाने जाते है।

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