बिहार में सड़क हादसे अब सिर्फ आँकड़े नहीं, बल्कि कई परिवारों की जिंदगी का अंत बनते जा रहे हैं। लेकिन बिहार के भोजपुर जिले के सिकरहटा थाना क्षेत्र में जो घटना सामने आई, उसने संवेदनाओं की सारी सीमाएं तोड़ दीं। यह एक ऐसी त्रासदी है जिसे सुनकर दिल कांप जाए, आंखें छलक उठें और मन यह सोचकर सिहर उठे कि कभी-कभी जिंदगी इतनी बेरहम भी हो सकती है।
एक ऐसी शादी, जो परिवारों के लिए नई शुरुआत थी, वह मातम की गूंज में तब्दील हो गई। जिस घर में नई नवेली बहू की डोली सजनी थी, वहां अर्थी पहुंची। और जो हाथ बहू के गृह प्रवेश के स्वागत के लिए लालायित थे, वही हाथ उसकी चिता को अग्नि देने के लिए कांपते हुए उठे।
शादी से विदाई तक का सफर, जो बना जीवन की अंतिम यात्रा
सिकरहटा थाना क्षेत्र के रंजमलडीह गांव निवासी मोनू कुमार की शादी मंगलवार को हसन बाजार थाना क्षेत्र के इनरपतपुर गांव निवासी ललिता देवी से हुई थी। बारात धूमधाम से निकली, दोनों परिवारों में जश्न का माहौल था। घर की बेटियों ने ढोलक बजाई थी, और रिश्तेदारों ने फूलों से वरमाला का मंच सजाया था। दुल्हन के हाथों में मेंहदी का रंग चढ़ा ही था, लेकिन किसे पता था कि उसी मेंहदी के रंग के साथ उसकी सांसें भी विदा हो जाएंगी।

बुधवार की सुबह, दूल्हा मोनू कुमार अपनी दुल्हन ललिता देवी और अन्य रिश्तेदारों के साथ कार से वापस घर लौट रहा था। लेकिन सिकरौल पेट्रोल पंप के पास एक तेज रफ्तार ट्रक से उनकी कार की सीधी टक्कर हो गई। चीख-पुकार मच गई, वाहन का शीशा चटक गया और पल भर में सात लोगों की जिंदगी थम गई।
अस्पताल की जंग और फिर एक अंतिम सांस
घायलों को पहले आरा और फिर पटना के निजी अस्पताल में ले जाया गया। दूल्हा-दुल्हन दोनों की हालत नाजुक बनी रही। पर गुरुवार की दोपहर ललिता देवी की सांसे थम गईं। शादी के जोड़े में लिपटी वह नवविवाहिता दुल्हन हमेशा के लिए विदा हो गई। डॉक्टरों के बयान के बाद जब यह खबर परिवार तक पहुंची, तो एक ही सवाल गूंज रहा था—”क्या सच में ललिता नहीं रही?”
अर्थी पर सजी दुल्हन और पिता की जगह ससुर की चिता पर अग्नि
जब ससुराल वालों को बताया गया कि बहू की मृत्यु हो गई है, तो पूरे गांव में कोहराम मच गया। जहां गृह प्रवेश की तैयारियां थीं, वहां अब अंतिम यात्रा की तैयारी शुरू हो गई। फूलों से सजी गाड़ी अब अर्थी बन गई, और दुल्हन का स्वागत अब रोते-बिलखते ससुराल वालों ने किया।
सबसे हृदय विदारक दृश्य तब सामने आया, जब ललिता के ससुर ने अपने हाथों से उसे मुखाग्नि दी। यह परंपरा में शायद विरल ही होता है, लेकिन भावनाओं में वह क्षण ऐसा था, जिसने हर आंख को नम कर दिया। जो रिश्ता कुछ घंटों पहले जुड़ा था, वो अब चिरकालिक पीड़ा बन चुका था।
दूल्हा ICU में, जिंदगी और मौत की लड़ाई जारी
घटना के बाद मोनू कुमार की हालत गंभीर बनी हुई है। वह ICU में भर्ती हैं और अभी भी कोमा में हैं। डॉक्टरों की टीम लगातार निगरानी में है। परिवार के लोग अस्पताल के दरवाजे पर बैठकर हर पल दुआ कर रहे हैं कि उनका बेटा लौट आए—कम से कम एक के हिस्से की सांसें तो बच जाएं।
बिखर गया एक और परिवार, अधूरा रह गया एक सपना
ललिता देवी अपने माता-पिता की तीसरी संतान थी। पिता दूधनाथ सिंह का देहांत पहले ही हो चुका था। मां इतराजो देवी, भाई धनजी व नंदजी और बहन सविता देवी के लिए यह दुख शब्दों से परे है। उन्होंने अपनी बहन को हंसते हुए विदा किया था, यह सोचकर कि वह आज से एक नई जिंदगी शुरू करने जा रही है। लेकिन यह विदाई उसकी आखिरी बन गई।
समाज के लिए एक सवाल और प्रशासन के लिए चेतावनी
इस हृदय विदारक घटना ने एक बार फिर बिहार की सड़कों पर व्याप्त लापरवाही और ट्रैफिक सिस्टम की खामियों को उजागर किया है। सवाल उठता है—कब तक ऐसे हादसे होते रहेंगे? कब तक किसी की बेटी, किसी की बहू, किसी की पत्नी इस तरह सड़कों पर दम तोड़ती रहेगी? ललिता अब नहीं रही, लेकिन उसकी कहानी आज हर बेटी, हर बहन, हर परिवार के लिए एक चेतावनी है। जिंदगी बहुत नाजुक है, और कभी-कभी एक चूक जीवन भर का मातम दे जाती है।