बिहार की राजनीति में हमेशा कुछ न कुछ मजेदार, हैरतअंगेज़ और दुखद घटनाएं होती रहती हैं – लेकिन इस बार मामला गंभीर तो है ही, साथ ही इतना अजीब है कि उस पर हंसी भी रोके नहीं रुक रही। पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (NMCH) में ऐसा कुछ हुआ कि अब अस्पतालों में मरीजों को सिर्फ डॉक्टरों से नहीं, बल्कि चूहों से भी जीवन की भीख मांगनी पड़ रही है।
दरअसल, बिहार की बिगड़ी स्वास्थ्य व्यवस्था पर विपक्ष पहले से हमलावर था, लेकिन अब जो हुआ है वह स्वास्थ्य तंत्र की विफलता नहीं, “चूहा तंत्र” की सफलता का प्रतीक बन चुका है। NMCH में भर्ती एक मरीज की पांचों पैर की उंगलियां चूहों ने रातों-रात कुतर डालीं।
“चूहा एक्सप्रेस” ने किया हमला – तेजस्वी बोले: डॉक्टर न सही, चूहे तो एक्टिव हैं!
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने बुधवार को इस दर्दनाक वाकये पर तीखा तंज कसते हुए कहा,
“बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था का कब्र बना दिया गया है। अस्पताल में मरीज को चूहा कुतर रहा है और मंत्री आराम से झपकी ले रहे हैं। हमने वीडियो जारी किया है—कोई देख ले, अस्पताल में चूहे घुसकर ‘मेडिकल मर्डर’ कर रहे हैं!”
तेजस्वी ने कहा कि उन्होंने अपने कार्यकाल में 700 गायब डॉक्टरों को बर्खास्त किया, जबकि अब वे अस्पताल तक का दौरा करने में हिचकिचाते हैं।
“अब तो अस्पताल में बेड की जगह ब्लैक में बिक रही है, डॉक्टर की जगह चूहे तैनात हैं। मरीज इलाज नहीं, चूहों से अपनी अंगुलियों की रक्षा करवा रहे हैं।”
मीसा भारती का व्यंग्य: “अब चूहों से ऑपरेशन करवाने की तैयारी है क्या?”
राज्यसभा सांसद मीसा भारती भी पीछे नहीं रहीं। उन्होंने NMCH की घटना पर कहा:
“क्या NMCH में अब चूहे MBBS कर रहे हैं? एक मरीज की चार-चार उंगलियां कुतर ली गईं और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे को यह भी नहीं पता कि बेड पर कौन है—मरीज या चूहा?”
मीसा ने गरीब मरीजों को समय पर इलाज और दवा न मिलने पर भी सवाल उठाए और सीधे स्वास्थ्य मंत्री से जवाब मांगा।
“मंगल पांडे बताएं कि चूहों की ड्यूटी किसने लगाई है? ये सरकारी अस्पताल है या ‘चूहा शोध संस्थान’?”
घटना क्या थी? चूहे ने रातों-रात पांच उंगलियां की चपेट में
नालंदा निवासी अवधेश कुमार, जो अपने टूटे पैर के इलाज के लिए NMCH आए थे, उन्हें किस्मत ने अस्पताल में चूहों के हवाले कर दिया।
हड्डी रोग विभाग में भर्ती अवधेश को ड्रिप चढ़ी थी, जिससे उन्हें नींद नहीं आ रही थी। किसी तरह रात में झपकी आई और सुबह उठे तो उनके बेड पर खून बिखरा था।
नजारा डरावना था—प्लास्टर चढ़े पैर की पांचों उंगलियां चूहों ने कुतर दी थीं।
“नींद खुली तो लगा जैसे आग लग गई हो पैर में। देखा तो खून ही खून… और उंगलियां गायब।”
अब सवाल ये है कि…
- जब थाने के सामने से बच्चे गायब हो सकते हैं,
- जब सरकारी अस्पतालों में चूहे मरीजों की उंगलियां चबा सकते हैं,
- जब स्वास्थ्य मंत्री चुप और विपक्ष मज़ाक में बिफरा हो,
- तो ये समझिए कि बिहार में ‘लोकतंत्र’ नहीं, ‘चूहातंत्र’ चल रहा है।
अब समाधान क्या है? चूहों के लिए अलग ICU?
तेजस्वी ने व्यंग्य करते हुए कहा:
“अगर ऐसे ही चलता रहा, तो आने वाले समय में हर अस्पताल में मरीज के साथ ‘एक बिल्ली’ भी भर्ती करवाई जाएगी – सिर्फ सुरक्षा के लिए।”
विपक्ष की मांग है कि अस्पतालों में तुरंत हाईलेवल जांच हो, और NMCH प्रशासन को निलंबित किया जाए। वहीं, स्वास्थ्य विभाग अभी ‘हम जांच कर रहे हैं’ की स्क्रिप्ट रट रहा है।
राजनीति या कर्तव्यविमुखता का चरम?
बिहार की राजनीति में अब एक नया सवाल हवा में तैर रहा है:
“क्या बिहार सरकार के लिए चूहे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं या मरीज?”
इस सवाल का जवाब आने वाला वक्त देगा, लेकिन फिलहाल तो इतना तय है कि बिहार की जनता को अब अस्पतालों में इलाज से पहले चूहे भगाने की जड़ी-बूटी साथ रखनी होगी।
बिहार की यह घटना केवल एक मरीज की नहीं, यह पूरे सिस्टम के सड़ जाने की कहानी है। यदि एक सरकारी अस्पताल में मरीज की उंगलियां चूहों से सुरक्षित नहीं हैं, तो सरकार का भरोसा चूहों से भी कमजोर हो गया है। तेजस्वी के तंज और मीसा की सटीक चोट ने इस मुद्दे को केवल राजनीतिक नहीं, एक राष्ट्रीय मज़ाक बना दिया है।
और सबसे बड़ा सवाल ये है—अब अस्पताल में भर्ती होना है या जंगल में सुरक्षित रहना है?