बिहार में भूमि सर्वेक्षण की प्रक्रिया को लेकर राजस्व विभाग लगातार सख्ती बढ़ा रहा है। पटना जिले के अंचलाधिकारियों (सीओ) के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की तैयारी की जा रही है, क्योंकि लंबित दाखिल-खारिज मामलों में लगातार लापरवाही, देरी और गड़बड़ी सामने आ रही है।
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के निर्देशानुसार राज्य में 2026 तक भूमि सर्वे का कार्य पूरा करना है, लेकिन पटना जिले में दर्जनों अंचलों में लंबित मामलों की संख्या हजारों में पहुंच चुकी है। इससे न केवल आम जनता की परेशानी बढ़ी है, बल्कि भ्रष्ट अधिकारियों के भ्रष्टाचार और मनमानी रवैये की पोल भी खुल गई है।
भूमि सर्वे में बढ़ती गड़बड़ियां, राजस्व विभाग ने दी कड़ी चेतावनी
बिहार सरकार के राजस्व भूमि सुधार विभाग की ओर से भूमि सर्वेक्षण प्रक्रिया में निरंतर गड़बड़ी के आरोपों के बाद कड़े निर्देश जारी किए गए हैं। विशेष रूप से पटना जिले में दाखिल-खारिज मामलों के निपटान में देरी बरतने वाले सीओ को स्पष्ट अल्टीमेटम दिया गया है।
जिला प्रशासन ने आदेश दिया है कि 75 दिनों से अधिक लंबित मामलों का समाधान इस माह के अंत तक अनिवार्य रूप से किया जाए, अन्यथा दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी विभागीय कार्रवाई शुरू की जाएगी। यह चेतावनी पटना जिले के सभी सीओ को भेजी गई है, जो अब अपनी कार्यशैली सुधारने के लिए मजबूर होंगे।
पटना जिले में लंबित मामले: गंभीर स्थिति का आंकड़ा
पटना जिले में कुल दाखिल-खारिज मामलों की संख्या 14,000 से अधिक है, जिनमें से लगभग 1,700 मामले 75 दिनों से अधिक समय से लंबित पड़े हैं। खासकर पांच अंचलों – संपतचक (636), बिहटा (499), दीदारगंज (156), धनरूआ (105), और नौबतपुर (82) में मामलों की लंबित सूची सबसे अधिक है।
इसके अलावा पालीगंज, बिक्रम, दुल्हिन बाजार, मनेर, दानपुर, बाढ़, मसौढ़ी समेत लगभग सभी अंचलों में मामले लटकाए जाने का सिलसिला जारी है। जांच में यह सामने आया है कि अधिकांश मामलों में सीओ की मनमानी, लापरवाही और भ्रष्टाचार की बड़ी भूमिका है।
राजस्व विभाग की समीक्षा बैठक में इन अंचलों के सीओ को कड़ी चेतावनी दी गई कि वे इस माह के अंत तक लंबित मामलों का निपटारा करें, अन्यथा विभागीय गाज गिरेगी।
नियमों की अवहेलना: आम जनता की बेइज्जती और प्रशासनिक मनमानी
भूमि दाखिल-खारिज मामले सामान्य स्थिति में 35 दिन और आपत्ति वाले मामलों में 75 दिनों में निपटाए जाने का नियम है, लेकिन पटना में जनता महीनों तक प्रशासन के चक्कर काटती रहती है। यह सिर्फ असुविधा नहीं, बल्कि प्रशासनिक भ्रष्टाचार का साफ संकेत है।
जिलाधिकारी डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने कड़ा निर्देश दिया है कि दाखिल-खारिज के अलावा भूमि मापी, परिमार्जन प्लस, अतिक्रमण जैसे मामलों का भी शीघ्र निपटारा किया जाए, ताकि आम जनता को तत्काल राहत मिल सके।
भ्रष्टाचार और घूसखोरी से आम आदमी परेशान
भूमि सर्वेक्षण कार्य में न केवल विलंब हो रहा है, बल्कि भारी भ्रष्टाचार भी व्याप्त है। आम नागरिकों का कहना है कि बिना घूस या ‘चढ़ावा’ के कोई काम नहीं होता। फिर भी घूस देने के बाद भी कई महीनों तक अंचल कार्यालय के चक्कर लगाने पड़ते हैं।
यदि कोई दबाव बनाता है तो उसके खिलाफ झूठे मुकदमे, सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप लगाकर जेल भेजने की कोशिश की जाती है। इससे आम लोग डर के मारे चुप रहने को मजबूर हैं, और भ्रष्ट अधिकारी खुलेआम अपनी मनमानी कर रहे हैं।
चुनावी माहौल और राजनीति का सियासी ड्रामा
आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ ही महीनों पहले भूमि सर्वेक्षण की गड़बड़ियों से उपजी जनता की नाराजगी ने राज्य सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। जनता के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए राजस्व और भूमि सुधार विभाग के मंत्री संजय सावरगी ने मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए कई कड़े कदम उठाए हैं।
पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है और सभी जिलाधिकारियों को भूमि संबंधित लंबित मामलों को तत्काल निपटाने के निर्देश दिए गए हैं। सरकार की यह कोशिश साफ तौर पर चुनावी नतीजों को ध्यान में रखकर की जा रही है ताकि जनता का गुस्सा शांत किया जा सके और चुनावी लाभ उठाया जा सके।
सवाल जो जनता को करना चाहिए
क्या सरकार महज कुछ महीनों में उस ‘कैंसर’ जैसी जटिल समस्या को जादू की छड़ी से दूर कर पाएगी, जो वर्षों से जमीन पर फैली भ्रष्टाचार और लापरवाही का परिणाम है?
किसानों और आम लोगों की सबसे बड़ी समस्या जो अंचल स्तर पर उत्पन्न होती है, क्या उस पर सही मायनों में लगाम लगेगी? या फिर यह सब सिर्फ चुनावी रणनीति के तहत जनता को बहलाने का माध्यम है?
जनता की नजरें अब हर कदम पर
पटना जिले की भूमि सर्वे और दाखिल-खारिज प्रक्रिया में व्याप्त भ्रष्टाचार और लापरवाही की खबरें न केवल प्रशासनिक विफलता की पुष्टि करती हैं, बल्कि जनता की बढ़ती नाराजगी का सूचक भी हैं।
आने वाले विधानसभा चुनाव में जनता इन तमाम सवालों का जवाब अपने वोट की ताकत से देगी। यह समय है कि प्रशासन और सरकार सिर्फ दावों और दिखावे तक सीमित न रहें, बल्कि जमीनी स्तर पर वास्तविक सुधार लाएं, तभी जनता का विश्वास बहाल हो सकेगा।