बिहार में कानून-व्यवस्था पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। राजधानी पटना से सटे पालीगंज अनुमंडल क्षेत्र में एक और दिल दहला देने वाली मॉब लिंचिंग की घटना सामने आई है। जहां ग्रामीणों ने एक युवक को चोर समझकर पीट-पीट कर मार डाला। यह घटना न केवल राज्य की विधि व्यवस्था पर करारा तमाचा है, बल्कि ‘सुशासन’ के तमाम दावों की सच्चाई भी उजागर करती है।
इस जघन्य अपराध ने न सिर्फ एक निर्दोष युवक की जान ले ली, बल्कि यह भी दर्शाया कि भीड़ का कानून अब बिहार के गांवों में न्याय का विकल्प बनता जा रहा है।
मॉब लिंचिंग का खौफनाक सच: टुनटुन कुमार की पीट-पीटकर हत्या
घटना पालीगंज अनुमंडल के सिंगोड़ी थाना क्षेत्र अंतर्गत हादी नगर गांव की है। सोमवार देर रात, गांव के कुछ लोगों ने एक युवक को संदिग्ध गतिविधियों में देख ‘चोर-चोर’ का शोर मचाया। यह युवक था—जहानाबाद जिले के सिकरिया गांव निवासी 26 वर्षीय टुनटुन कुमार, जो एक बारात में शामिल होने आया था।
चीख-पुकार सुनकर गांव के लोग इकट्ठा हो गए और बिना सच्चाई जाने, टुनटुन को दौड़ाकर पकड़ लिया। फिर लाठी-डंडों से इतना पीटा कि उसकी हालत नाजुक हो गई। घायल अवस्था में युवक को अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
पुलिस की त्वरित कार्रवाई: दो आरोपी गिरफ्तार, जांच जारी
घटना की सूचना मिलते ही सिंगोड़ी थाना प्रभारी और उनकी टीम मौके पर पहुंची और शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। पालीगंज डीएसपी-1 प्रीतम कुमार स्वयं घटनास्थल पर पहुंचे और मामले की विस्तृत जांच शुरू की गई। पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार कर कड़ी पूछताछ शुरू कर दी है।
डीएसपी प्रीतम कुमार ने कहा:
“यह पूरी घटना कानून के खिलाफ है। किसी भी व्यक्ति को शक के आधार पर पीटना या मारना जघन्य अपराध है। हमने दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है और बाकी की तलाश जारी है। जल्द ही सभी दोषी कानून की गिरफ्त में होंगे।”
अपराध और राजनीति की सांठगांठ: पालीगंज बना ‘क्राइम बेल्ट’?
पालीगंज, बिहटा, मनेर, दुल्हिनबाजार जैसे उपनगरीय और ग्रामीण पटना के क्षेत्र बीते कुछ समय से अपराध के मामलों में सुर्खियों में रहे हैं। अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि पुलिस की सक्रियता भी उन्हें रोक नहीं पा रही है।
विशेष बात यह है कि ये क्षेत्र राजनीतिक रूप से संवेदनशील माने जाते हैं। जातीय समीकरण, पंचायत व विधानसभा चुनावों में वोट बैंक की राजनीति और स्थानीय स्तर पर नेताओं की आपसी प्रतिस्पर्धा—इन सबका एक दुष्परिणाम यह भी होता है कि अपराधियों को स्थानीय संरक्षण प्राप्त होता है। कई बार पुलिस कार्रवाई राजनीतिक दबाव में सीमित रह जाती है, जिससे अपराधियों का मनोबल और बढ़ जाता है।
एक ही दिन दो हत्याएं: दुल्हिनबाजार में किशोर की हत्या के बाद पालीगंज में युवक की मॉब लिंचिंग
पालीगंज अनुमंडल क्षेत्र में बीते चौबीस घंटे में दो नृशंस हत्याओं ने आम नागरिकों को हिला कर रख दिया है।
- पहली घटना: दुल्हिनबाजार में 13 वर्षीय किशोर अरमान आलम की ईंट-पत्थर से पीटकर हत्या
- दूसरी घटना: सिंगोड़ी थाने के हादी नगर में युवक टुनटुन कुमार की मॉब लिंचिंग
ये दोनों घटनाएं न केवल कानून-व्यवस्था की असफलता दर्शाती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का भरोसा पुलिस और न्याय प्रक्रिया पर से उठ चुका है।
‘सुशासन’ की साख खतरे में: पुलिस पर उठते सवाल
बिहार सरकार और पटना पुलिस भले ही हर मंच से अपराध नियंत्रण के दावे कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत इससे विपरीत है। ग्रामीणों में गुस्सा है, भय है और अब असहायता भी।
पुलिस का कहना है कि वह अपराधियों को पकड़ने के लिए लगातार छापेमारी कर रही है, लेकिन हर बड़ी वारदात के बाद ही हरकत में आने वाला तंत्र अब जनता के लिए पर्याप्त नहीं रह गया है।
पालीगंज अनुमंडल जैसे क्षेत्रों में पुलिस के पास संसाधनों की कमी, सीमित फोर्स और स्थानीय राजनीतिक हस्तक्षेप जैसे कारक कानून के शासन को लगातार कमजोर कर रहे हैं।
गांव में पसरा मातम, परिजन का रो-रोकर बुरा हाल
मृतक टुनटुन कुमार के परिजनों ने बताया कि वह किसी भी प्रकार की आपराधिक प्रवृत्ति में शामिल नहीं था। बारात में शामिल होने आया युवक ग्रामीणों की गलतफहमी का शिकार हो गया। परिजन इस घटना को “न्यायपालिका की असफलता और प्रशासन की उदासीनता” का परिणाम मान रहे हैं।
सवाल अब भी वही है—क्या बिहार में भीड़ का कानून ही अंतिम है?
पालीगंज की यह घटना बिहार के प्रशासन और समाज दोनों के लिए एक चेतावनी है। क्या अब हर संदिग्ध व्यक्ति को भीड़ पीट-पीट कर मार डालेगी? क्या पुलिस की भूमिका सिर्फ पोस्टमार्टम के बाद केस दर्ज करने तक सिमट गई है?
अगर समय रहते राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन ने ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह सामाजिक उन्माद जल्द ही एक भयावह विकराल रूप ले सकता है, जिसकी आँच से राजनीति भी अछूती नहीं रहेगी।