Friday, September 5, 2025
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Pahalgam Attack: नफरत का सौदागर कौन? शांति की राह में आतंक का रोड़ा, अब चाहिए निर्णायक जवाब

भारत के हृदय को एक बार फिर झकझोर दिया गया। जम्मू-कश्मीर के शांत, सुरम्य और पर्यटन-प्रिय क्षेत्र पहलगाम में हालिया आतंकी हमले ने पूरे देश को शोक, क्रोध और चिंता की गहराइयों में डाल दिया है। जो घाटी हाल के वर्षों में उम्मीदों की मिसाल बनी थी, आज वहां एक बार फिर गोलियों की गूंज और चीत्कारों ने मानवता की आत्मा को लहूलुहान कर दिया है।

हमले में निहत्थे नागरिकों पर गोलियां बरसाई गईं, वे जो अपने परिवारों के साथ प्रकृति की गोद में छुट्टियां मनाने आए थे। हमले की शैली वही पुरानी—पहचान पूछकर गोली चलाना। यह क्रूरता का वह स्तर है, जिसे शब्दों में बयान करना कठिन है।

आतंकी नेटवर्क की वही ‘पाक’ पटकथा

हमले की शुरुआती जांच में जो संकेत सामने आए हैं, वे कोई नई बात नहीं कहते—हमले की पटकथा पाकिस्तान की जमीन से लिखी गई थी। हर बार की तरह इस बार भी सीमा पार से संचालित आतंकी गुटों की भूमिका सामने आ रही है। ISI प्रायोजित आतंकी नेटवर्क और स्थानीय गुमराह युवाओं का घातक संयोजन, घाटी को फिर से अशांत करने की साजिश रच रहा है।

2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद केंद्र सरकार ने जिस “नई सुबह” की शुरुआत की थी, उसमें निश्चित रूप से बदलाव देखने को मिला। आतंकवाद, पत्थरबाजी और बंद के मामलों में उल्लेखनीय गिरावट आई, लेकिन हाल का यह हमला स्पष्ट करता है कि शांति के इस रास्ते पर अभी मीलों चलना बाकी है।

370 हटने के बाद बदली तस्वीर, लेकिन…

गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में 2019 से 2023 के बीच सुरक्षा स्थिति में बड़ा सुधार दर्ज किया गया:

  • लद्दाख में कोई आतंकी घटना दर्ज नहीं की गई।
  • पत्थरबाजी और अवांछित बंद की घटनाओं में लगभग पूर्ण विराम।
  • 2023 में 2.11 करोड़ पर्यटक जम्मू-कश्मीर आए — जो घाटी की बदली तस्वीर का प्रमाण है।
  • विदेशी पर्यटकों की संख्या में 2.5 गुना वृद्धि दर्ज की गई।

स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और सरकारी कार्यालयों में गतिविधियां सामान्य रही हैं। वर्षों बाद एक ऐसी घाटी दिखी जहां विकास की बातें होने लगी थीं। लेकिन पहलगाम का हमला इस पर एक गहरा प्रश्नचिह्न छोड़ गया है।

शांति की प्रक्रिया बनाम आतंकी साजिशें

यह आवश्यक है कि देश आतंकवाद को केवल “घटना” के रूप में न देखे, बल्कि उसे एक सतत रणनीतिक युद्ध के रूप में समझे, जिसे भारत को हर स्तर पर लड़ना है—कूटनीतिक, सामरिक, और सामाजिक।

सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति के बावजूद अगर ऐसे हमले हो पा रहे हैं तो यह:

  1. स्थानीय इंटेलिजेंस नेटवर्क की चुनौतियों की ओर इशारा करता है।
  2. सीमा पार घुसपैठ को रोकने की मौजूदा रणनीति की समीक्षा की माँग करता है।
  3. घाटी में छिपे हुए आतंकी स्लीपर सेल्स की पुनराक्ति को लेकर सतर्क रहने की चेतावनी देता है।

देश की सामूहिक भावना: अब चाहिए अंतिम निर्णायक उत्तर

हमले के बाद हर भारतवासी के मन में एक ही सवाल है—कब तक?
कब तक निर्दोष लोग शहीद होते रहेंगे? कब तक पाकिस्तान की धरती से पोषित यह “जहरीला इको-सिस्टम” हमारा खून बहाता रहेगा?

अब समय आ गया है कि भारत केवल जवाब न दे, बल्कि आतंक के पूरे ढांचे को समाप्त करने का ऐतिहासिक निर्णय ले। यह युद्ध कश्मीर की शांति के लिए नहीं, पूरे भारत की आत्मा की सुरक्षा के लिए है।

घाटी की शांति के लिए निर्णायक इच्छाशक्ति की ज़रूरत

इस समय सरकार और सुरक्षाबलों के साथ-साथ मीडिया, नागरिक समाज और आम जनमानस की एकजुटता और सजगता पहले से कहीं अधिक ज़रूरी है।
यह हमला एक चेतावनी है कि शांति की जो डगर हमने चुनी है, वह आसान नहीं है। लेकिन यह डगर ही सही है।

भारत को अब यह तय करना है कि आतंक के इस चक्र को तोड़ने का रास्ता अधूरा नहीं छोड़ा जाएगा।
क्योंकि जो शांति अधूरी हो, वह स्थाई नहीं होती। और भारत को एक स्थाई शांति चाहिए—अपने हर नागरिक के लिए।

Bunty Bharadwaj
Bunty Bharadwajhttp://nationbharatvarsh.in
बन्टी भारद्वाज Nation भारतवर्ष के मैनेजिंग डाइरेक्टर है और दो दशकों से पत्रकारिता के क्षेत्र मे सक्रिय है. इस दौरान ये प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मे अपनी सेवा दे चुके है. 2004 मे "आज" अखबार से अपनी कैरियर की शुरुआत करने वाले बन्टी भारद्वाज बिग मैजिक गंगा के क्राइम शो "पुलिस फाइल्स" और लाइफ ओके के क्राइम शो "सावधान इंडिया" मे स्क्रिप्ट राइटिंग का कार्य भी कर चुके है.

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