Saturday, September 6, 2025
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बिहार चुनाव 2025: महागठबंधन में सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय,जीत की संभावना और साख बने नए मानक

बिहार की राजनीति एक बार फिर बड़े बदलावों की दहलीज पर खड़ी है। आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर महागठबंधन ने तैयारियों की रफ्तार तेज कर दी है। सहयोगी दलों के बीच सीटों के बंटवारे पर सहमति का एक प्रारूप तैयार कर लिया गया है, जो आगामी रणनीति की दिशा और दशा तय करेगा।

24-25 अप्रैल को पटना के सदाकत आश्रम में होने वाली महागठबंधन की दूसरी औपचारिक बैठक में इस प्रारूप पर विस्तृत चर्चा और अंतिम निर्णय की उम्मीद है। इस बार गठबंधन ने स्पष्ट कर दिया है कि सीट वितरण उम्मीदवारों की जीतने की संभावना और व्यक्तिगत साख को आधार बनाकर किया जाएगा — एक ऐसा फॉर्मूला जो महागठबंधन की अब तक की रणनीति से अलग और कहीं अधिक व्यावहारिक नजर आता है।

तेजस्वी यादव के नेतृत्व में समन्वय समिति की सक्रियता

पिछली बैठक में महागठबंधन ने नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को समन्वय समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया था। तेजस्वी अब समन्वय पैनल के माध्यम से सभी सहयोगी दलों को एकसाथ जोड़ने और सीट बंटवारे की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की कोशिश कर रहे हैं। प्रत्येक दल से दो प्रतिनिधियों को शामिल कर एक नया ढांचा तैयार किया गया है, जो निर्णय प्रक्रिया को लोकतांत्रिक और सामूहिक बनाएगा।

कौन कितनी सीट चाहता है? जानिए अंदरूनी समीकरण

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने कम से कम 150 सीटों पर लड़ने की इच्छा जताई है, जो उसके प्रभाव क्षेत्र और संगठनात्मक ताकत को देखते हुए अपेक्षित भी है। पिछले चुनाव में राजद ने 145 सीटों पर मुकाबला किया था।

कांग्रेस ने पिछली बार 70 सीटों की मांग की थी लेकिन सिर्फ 19 सीटें जीत सकी थी। इस बार भी कांग्रेस अधिक सीटों के लिए प्रयासरत है, लेकिन गठबंधन के भीतर यह स्पष्ट संकेत दिया जा रहा है कि प्रदर्शन और जमीनी ताकत के आधार पर ही सीटें दी जाएंगी।

वामपंथी दलों में, खासकर सीपीआई-एमएल ने अपने मजबूत प्रदर्शन के बल पर 30 से अधिक सीटों की मांग रखी है। 2020 के चुनाव में सीपीआई-एमएल ने 19 में से 12 सीटों पर जीत हासिल कर चौंकाया था। अन्य वामपंथी दल सीपीआई और सीपीएम ने लगभग 10-12 सीटों की मांग रखी है।

सीट बंटवारे को लेकर महागठबंधन के भीतर आम राय बनती दिख रही है कि पिछली चुनावी परफॉर्मेंस, वोट प्रतिशत, और संभावित जीत जैसे ठोस मानकों को आधार बनाकर ही अंतिम फैसला किया जाए।

जमीनी मजबूती के लिए पंचायत से जिला स्तर तक तैयारी

महागठबंधन ने सीट बंटवारे के साथ-साथ बूथ स्तर पर मजबूती लाने का भी रोडमैप तैयार किया है। पंचायत, ब्लॉक और जिला स्तर पर नियमित संयुक्त बैठकें आयोजित की जाएंगी, जिनका उद्देश्य सभी छह दलों के कार्यकर्ताओं में तालमेल और एकजुटता को बढ़ाना है।

विशेष ध्यान बूथ मैनेजमेंट, प्रचार अभियान की समन्वित रणनीति, और स्थानीय स्तर पर वोट ट्रांसफर को प्रभावी बनाने पर दिया जाएगा। गठबंधन नेताओं का मानना है कि जमीनी स्तर पर समन्वय ही आगामी चुनावों में सफलता की कुंजी बनेगा।

विश्लेषण: जीतने की संभावना और साख को प्राथमिकता देना कितना असरदार कदम?

महागठबंधन का यह नया दृष्टिकोण बिहार की राजनीति में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है। पहले सीट बंटवारे में जातीय गणित, दलगत मांग और राजनीतिक सौदेबाजी का ज्यादा असर दिखता था। लेकिन इस बार व्यक्तिगत साख, लोकप्रियता और जीतने की वास्तविक संभावना को केंद्र में रखना, गठबंधन की रणनीति को कहीं अधिक व्यावहारिक और मतदाताओं के मनोविज्ञान के अनुकूल बनाता है।

यदि महागठबंधन इस फार्मूले को निष्पक्षता से लागू कर पाया, तो वह न केवल आंतरिक असंतोष से बच सकेगा, बल्कि मतदाताओं के बीच एक सकारात्मक संदेश भी भेज सकेगा कि गठबंधन केवल सत्ता नहीं, बल्कि बेहतर नेतृत्व और परिणाम देने के लिए चुनाव लड़ रहा है।

Expert Opinion :

प्रोफेसर अजय कुमार सिंह (राजनीतिक विश्लेषक, दिल्ली विश्वविद्यालय) कहते हैं,
“महागठबंधन का ‘विजेता उम्मीदवार’ मॉडल एक व्यवहारिक कदम है। बिहार में चुनावी परिणाम अक्सर छोटे मार्जिन से तय होते हैं। यदि महागठबंधन सही प्रत्याशी चुनने में सफल होता है, तो वह एनडीए को कड़ी टक्कर दे सकता है। हालांकि, सहयोगी दलों की महत्वाकांक्षा और सीटों को लेकर अंदरूनी खींचतान इस रणनीति के सबसे बड़े खतरे हैं।”

सीनियर जर्नलिस्ट रश्मि शेखर का मानना है,
“तेजस्वी यादव का समन्वय समिति बनाना और उसे सक्रिय रखना एक परिपक्व नेतृत्व का संकेत है। यदि महागठबंधन गांव से लेकर शहर तक कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय बैठा पाता है, तो यह भाजपा-जदयू गठजोड़ के सामने गंभीर चुनौती पेश कर सकता है। खासकर युवा मतदाताओं में इसकी अच्छी छाप पड़ सकती है।”

निष्कर्ष: असली परीक्षा अब शुरू

महागठबंधन ने सीट बंटवारे को लेकर एक ठोस और पेशेवर रणनीति की ओर कदम बढ़ाया है। लेकिन असली चुनौती इसे व्यवहार में लागू करने की होगी। यदि सहयोगी दल व्यक्तिगत और दलगत हितों से ऊपर उठकर सामूहिक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो बिहार में सत्ता परिवर्तन का सपना साकार हो सकता है। 24-25 अप्रैल की बैठक अब निर्णायक साबित होगी, जहां इस रणनीति की असली परीक्षा होनी है।

बिहार की राजनीति में अगले कुछ दिन बेहद दिलचस्प और निर्णायक रहने वाले हैं।

Amlesh Kumar
Amlesh Kumar
अमलेश कुमार Nation भारतवर्ष में सम्पादक है और बीते ढाई दशक से प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिकता जगत की अनुभव के साथ पंजाब केशरी दिल्ली से शुरुवात करते हुए दिनमान पत्रिका ,बिहारी खबर, नवबिहार, प्रभात खबर के साथ साथ मौर्य टीवी, रफ्तार टीवी,कशिश न्यूज, News4Nation जैसे मीडिया हाउस में काम करते राजनीति, क्राइम, और खेल जैसे क्षेत्रों में बेबाक और बेदाग पत्रकारिता के लिए जाने जाते है।

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