बिहार की राजनीति में जातीय समीकरणों की भूमिका लंबे समय से अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। हर चुनाव—चाहे लोकसभा हो, विधानसभा या स्थानीय निकाय—राजनीतिक दल अपने प्रत्याशियों के चयन में जातिगत आधार को प्राथमिकता देते हैं। इस संदर्भ में, शहरी क्षेत्रों में निवास करने वाला वैश्य समाज राज्य की चुनावी राजनीति में एक निर्णायक शक्ति के रूप में उभरा है।
इस वर्ष होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारियाँ तेज कर दी हैं। ऐसे में, वैश्य समाज को साधना उनकी रणनीति का अभिन्न हिस्सा बन गया है। विशेषकर आरा विधानसभा क्षेत्र (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 194) में, वैश्य मतदाताओं की संख्या और प्रभाव को देखते हुए यह वर्ग एक बार फिर सियासी फोकस में आ गया है।
आरा: सियासी बदलाव की तैयारी में वैश्य चेहरे
आगामी चुनाव को लेकर आरा विधानसभा क्षेत्र से वैश्य समाज के कई उभरते नेता सामने आए हैं, इस क्षेत्र में भाजपा से प्रेम पंकज उर्फ ललन जी और महागठबंधन के घटक दल भाकपा (माले) से अमित कुमार बंटी जैसे नेता वैश्य समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं और स्थानीय स्तर पर सामाजिक एवं राजनीतिक प्रभाव रखते हैं। इनमें से हर एक नेता स्थानीय स्तर पर सामाजिक और राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे हैं और जनता के बीच मजबूत पकड़ रखते हैं। यदि इनमें से किसी को आगामी चुनाव में पार्टी का समर्थन मिलता है, तो ये आरा विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करने की पूरी क्षमता रखते हैं।
आरा में प्रेम पंकज की अहम भूमिका
2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी रणनीतिक तैयारियों को तेज़ कर दिया है। पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व न केवल संगठनात्मक स्तर पर सुदृढ़ीकरण में जुटा है, बल्कि वैश्य समाज जैसे कोर वोट बैंक को फिर से साधने के लिए सक्रिय रणनीति अपना रहा है।
इसी क्रम में पार्टी ने हाल ही में डॉ. दिलीप जायसवाल को बिहार प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया, जो स्वयं वैश्य समुदाय से आते हैं। इसके अलावा, एमएलसी राजेंद्र गुप्ता को चुनाव अभियान समिति जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है—जो इस ओर इशारा करता है कि पार्टी आगामी चुनाव में वैश्य समुदाय को केंद्र में रखकर रणनीति बना रही है।
बात अगर आरा विधानसभा की करें, तो यहां भाजपा के चर्चित और प्रभावशाली चेहरों में प्रेम पंकज उर्फ ललन जी का नाम सबसे प्रमुख रूप से लिया जाता है। वैश्य समाज से आने वाले प्रेम पंकज की इस समुदाय में मजबूत पकड़ रही है।
उनकी पत्नी इंदु देवी वर्तमान में आरा नगर निगम की महापौर हैं और उनकी जीत में वैश्य समाज ने निर्णायक भूमिका निभाई थी। यह दर्शाता है कि प्रेम पंकज का न केवल संगठनात्मक प्रभाव है, बल्कि जनाधार भी उन्हें मज़बूत बनाता है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और संगठनात्मक पकड़
प्रेम पंकज इस समय भोजपुर जिला भाजपा के उपाध्यक्ष हैं, जबकि उनके पुत्र प्रतिक राज भी जिले में भाजपा की राजनीति में सक्रिय हैं। परिवार की राजनीतिक भागीदारी यहीं नहीं रुकती—प्रेम पंकज के भाई अलोक अंजन भी प्रदेश स्तर पर भाजपा की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। यह दिखाता है कि प्रेम पंकज न केवल व्यक्तिगत रूप से, बल्कि पारिवारिक स्तर पर भी भाजपा संगठन से गहराई से जुड़े हुए हैं।
उम्मीदवारी की संभावना और राजनीतिक समीकरण
हालांकि प्रेम पंकज के आरा विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी बनने को लेकर औपचारिक रूप से कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा, लेकिन यह बात साफ है कि भाजपा के पास भोजपुर जिले में कई ऐसे वरिष्ठ और प्रभावशाली नेता हैं, जिन्हें टिकट मिल सकता है क्युकी वर्तमान विधायक अमरेंद्र प्रताप सिंह से शहर का एक खास बड़ा वर्ग नाराज चल रहा है सोशल मीडिया पर भी इनके उपर जमकर भड़ास निकाली जाती है। सूत्रों की माने तो अमरेंद्र प्रताप सिंह को विधायक का टिकट ना देकर केंद्र के तरफ से एक बड़ा ओहदा दिया जा सकता है।
फिर भी, यह निर्विवाद सत्य है कि आरा विधानसभा में वैश्य समाज की निर्णायक भूमिका रही है, और ऐसे में भाजपा के लिए प्रेम पंकज जैसे लोकप्रिय नेता का समर्थन चुनाव रणनीति के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले भाजपा द्वारा वैश्य समाज को साधने के संकेत साफ हैं। आरा विधानसभा जैसी राजनीतिक रूप से संवेदनशील सीट पर प्रेम पंकज जैसे नेता, जिनकी जनसंपर्क, संगठन में पकड़ और समुदाय में स्वीकार्यता है, भाजपा के लिए एक अहम रणनीतिक भूमिका निभा सकते हैं। भले ही वे सीधे तौर पर प्रत्याशी घोषित न हों, उनका समर्थन और संगठनात्मक सक्रियता भाजपा को निर्णायक बढ़त दिलाने में सहायक हो सकती है। ऐसे में भाजपा की चुनावी गणित में प्रेम पंकज की भूमिका को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।
आरा में अमित कुमार बंटी की भूमिका
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) राज्य में दलितों, पिछड़ों और वंचितों की आवाज़ के रूप में जानी जाती है। पार्टी का कैडर वोट बैंक संगठित और वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध माना जाता है। हालांकि भाकपा (माले) इस समय महागठबंधन का हिस्सा है, जिसके कारण आरा जैसे क्षेत्रों में राजद का प्रभाव भी देखने को मिलता है। इन सबके बीच, अमित कुमार बंटी एक ऐसे नेता के रूप में उभर रहे हैं जिन्होंने पारंपरिक सीमाओं को पार कर सभी वर्गों में अपनी राजनीतिक पकड़ बनाई है।
स्कूल जीवन से शुरू हुआ राजनीतिक सफर
अमित बंटी का राजनीतिक जीवन 1995 में ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) से जुड़ाव के साथ शुरू हुआ। उन्होंने छात्र जीवन के दौरान ही हित नारायण क्षत्रिय उच्च विद्यालय, आरा में नौवीं कक्षा में पढ़ते हुए शुल्क वृद्धि के खिलाफ पहला छात्र आंदोलन किया था। यही वह मोड़ था जहां से उन्होंने जनहित के मुद्दों को लेकर अपनी सक्रियता की शुरुआत की, जो आगे चलकर व्यापक जनआंदोलन में परिवर्तित होती गई।
राजनीतिक पकड़ और सामाजिक सक्रियता
अमित बंटी आज भाकपा (माले) के जिला स्तर पर प्रमुख नेताओं में गिने जाते हैं। वह न केवल अपने संगठनात्मक कौशल के लिए, बल्कि सामाजिक अन्याय के खिलाफ बेबाक आवाज उठाने के लिए भी पहचाने जाते हैं। बंटी की विशेषता यह रही है कि उन्होंने पार्टी की पारंपरिक सीमाओं से परे जाकर विभिन्न सामाजिक वर्गों में संवाद स्थापित किया है, जिससे उनकी जनाधार वाली छवि और मजबूत हुई है।
आरा में भाकपा (माले) की स्थिति और भविष्य की संभावनाएं
आरा विधानसभा क्षेत्र में भाकपा (माले) की उपस्थिति पहले से रही है। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने क्यामुद्दीन अंसारी को उम्मीदवार बनाया, लेकिन दोनों बार सफलता नहीं मिल सकी। विश्लेषकों का मानना है कि लगातार दो बार की हार के बाद पार्टी को अब नई रणनीति और प्रभावशाली चेहरे की तलाश है।
ऐसे में अमित बंटी, जो सामाजिक न्याय, शिक्षा और नागरिक अधिकारों के मुद्दों पर लंबे समय से सक्रिय हैं, पार्टी के लिए एक ताजा और प्रभावी विकल्प बन सकते हैं।
वैश्य समाज से आने का लाभ
अमित बंटी वैश्य समाज से ताल्लुक रखते हैं, जो आरा विधानसभा क्षेत्र में एक प्रभावशाली और निर्णायक मतदाता वर्ग है। माले की परंपरागत राजनीति में जहां पिछड़े और दलित वर्गों पर जोर दिया गया, वहीं बंटी का मध्यमवर्गीय सामाजिक आधार पार्टी के लिए मतदाताओं का दायरा विस्तार करने में सहायक हो सकता है।
आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर जब सभी दल अपने समीकरण साधने में जुटे हैं, ऐसे में भाकपा (माले) के लिए अमित कुमार बंटी जैसे युवा और ज़मीनी नेता का उभार एक संजीवनी साबित हो सकता है। सामाजिक न्याय की विचारधारा के साथ संगठनात्मक पकड़ और जनप्रियता का समन्वय उन्हें एक संभावित उम्मीदवार के रूप में मजबूत बनाता है।
वैश्य समाज की निर्णायक ताकत
विशेषज्ञों का मानना है कि आरा जैसे क्षेत्र में जहां वैश्य समाज की जनसंख्या और आर्थिक प्रभाव दोनों ही उल्लेखनीय हैं, वहां यह समुदाय चुनावी परिणामों को सीधा प्रभावित कर सकता है। यही कारण है कि सभी प्रमुख राजनीतिक दल—चाहे वह राष्ट्रीय स्तर के हों या क्षेत्रीय—वैश्य नेताओं को प्रोत्साहित कर रहे हैं और उनके समर्थन से अपने चुनावी अभियान को मज़बूती देने की योजना बना रहे हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पूर्व आरा विधानसभा एक बार फिर राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा है। यहां वैश्य समाज के प्रभाव को देखते हुए राजनीतिक दल इस वर्ग के मजबूत नेताओं को सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा के प्रेम पंकज और माले के अमित बंटी जैसे नेता—अपने जनाधार, संगठनात्मक पकड़ और समुदाय में स्वीकार्यता के कारण—आगामी चुनावों में समीकरणों को बदलने की क्षमता रखते हैं। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि आने वाले समय में इन नेताओं की भूमिका क्या रूप लेती है और उनकी पार्टियाँ उन्हें किस रूप में आगे लाती हैं।