जनहित परिवार आरा नगर के बैनर तले आयोजित रजत जयंती पखवाड़ा कार्यक्रम के अंतर्गत, प्रख्यात रंगकर्मी सरफराज अहमद के निर्देशन में ‘बहादुर बिटिया’ नुक्कड़ नाटक का 25वां मंचन भव्य रूप से संपन्न हुआ। यह नाट्य प्रस्तुति आरा के रमना मैदान स्टेडियम के मुख्य द्वार पर, मुक्ताकाश मंच के तहत सैकड़ों नागरिकों की उपस्थिति में आयोजित की गई।

दहेज प्रथा पर करारा प्रहार
नाटक के विषय पर प्रकाश डालते हुए निर्देशक सरफराज अहमद ने बताया कि ‘बहादुर बिटिया’ समाज में व्याप्त दहेज प्रथा की विकृतियों पर आधारित एक प्रेरणादायक नाटक है। इसमें दिखाया गया कि एक शिक्षित युवती दहेज की मांग के कारण विवाह से इनकार कर देती है, जिसके बाद युवक अपने माता-पिता के विरोध के बावजूद उस युवती से विवाह करने का निर्णय लेता है। यह नाटक समाज को दहेज प्रथा जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ जागरूक करने और महिलाओं के अधिकारों को सशक्त करने का संदेश देता है।
सामाजिक चेतना और जनजागरण की अपील
जनहित परिवार प्रतिनिधि सभा के सभापति अतुल प्रकाश ने सभा को संबोधित करते हुए कहा,
“दहेज प्रथा आज भी समाज में कोढ़ के रूप में व्याप्त है। यह कुप्रथा न केवल कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देती है, बल्कि महिलाओं पर होने वाले विभिन्न अत्याचारों का भी प्रमुख कारण है। यदि हमें न्यायसंगत और समानाधिकार प्राप्त समाज की स्थापना करनी है, तो दहेज प्रथा एवं आडंबरपूर्ण शादियों का बहिष्कार करना आवश्यक है।”
नाट्य कलाकारों का प्रभावी प्रदर्शन
इस संगीतमय नुक्कड़ नाटक और हास्य लोकगीत में प्रमुख भूमिकाओं में अंबुज कुमार, अनिल सिंह, आरती राय, गौरी कुमारी, संजय पाल, कुमार नरेंद्र, गायक परमानंद प्रेमी (मुखिया, डुमरा पंचायत), नागेश्वर कुमार, जितेंद्र कुमार, लड्डू साहब अमन, ऋषि कुमार, बिहारीजी शालिनी श्री, सारिका पाठक, उषा पांडे, धर्मशिला देवी सहित अन्य कलाकारों ने प्रभावशाली अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

कलाकारों का अभिनंदन एवं सम्मान
कार्यक्रम में जनहित परिवार आरा नगर अध्यक्ष बृजमोहन त्रिपाठी ने कलाकारों का स्वागत किया, जबकि नंदकिशोर सिंह कमल ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर सभी प्रतिभागियों को ‘रजत जयंती सम्मान’ से अलंकृत किया गया। साथ ही, उन्हें अंग वस्त्र एवं प्रमाण पत्र प्रदान कर अतुल प्रकाश, नंदकिशोर सिंह कमल, डॉ. किरण कुमारी, अशोक मानव सहित अन्य गणमान्य अतिथियों ने सम्मानित किया।

संस्कृति और परंपरा का संगम
नाटक के समापन के उपरांत, पारंपरिक चैता गायन की सामूहिक प्रस्तुति ने कार्यक्रम को एक भावनात्मक और सांस्कृतिक ऊंचाई प्रदान की। आयोजन में उपस्थित नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नाटक के सामाजिक संदेश की सराहना करते हुए इसे समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।